ब्लैडर कैंसर के लक्षण गुर्दे के संक्रमण से मिलते जुलते होते हैं और मूत्राशय में संक्रमण और ब्लैडर कैंसर के लक्षण भी एक जैसे लगते हैं। ऐसे में इसके लक्षणों को पहचाना होगा।
ब्लैडर कैंसर के लक्षणों में यूरीन के दौरान जलन होना, यूरीन करने में दिक्कत होना, खुलकर यूरीन न आना, बार-बार दर्द का बढ़ जाना, रक्तस्राव होना इत्यादि शामिल हैं।
मूत्राशय की भीतरी परत में कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि को ब्लैडर कैंसर कहते है जो कि बाहरी परत तक फैलता है। 40 वर्ष की उम्र के बाद मूत्राशय का कैंसर आम है परन्तु यह युवा लोगों में बहुत कम देखने को मिलता हैं। ब्लैडर कैंसर प्रॉस्टेट ग्रंथि के बढ़ने, मूत्रमार्ग में संकुचन, गर्भ के समय आने वाली समस्याएं, मूत्राशय में पथरी, गर्भपात, किसी बीमारी के कारण इत्यादि ब्लैडर इंफेक्शन के जिम्मेदार है।
वैसे तो ब्लैडर कैंसर महिलाओं और पुरूषों दोनों को ही हो सकता है। लेकिन महिलाओं में यह कैंसर ज्यादा देखने को मिलता है। आइए जानें ब्लैडर कैंसर के लक्षणों के बारे में।
ब्लैडर कैंसर के लक्षण
यूरीन के साथ रक्त का आना (हीमैट्यूरीया)
यह लक्षण ब्लैडर कैंसर का पहला लक्षण है और यह लगभग 80 से 90 प्रतिशत लोगों में पाया गया है। हीमैट्यूरीया यूरीन में रक्त के रंग का दिख सकता है या जंग के रंग का दिख सकता है। हीमैट्यूरीया की जांच यूरीन की जांच कर उस स्थिति में भी की जा सकती है जबकि मरीज़ को ऐसे कोई लक्षण ना दिखें।
दर्दनाक यूरीनेशन या यूरीन के दौरान जलन (डिसयूरीया)
यह लक्षण यूरीनेशन की फ्रिक्वेंसी या यूरीनेशन की तीव्र इच्छा से बहुत अलग है और यह पुरूषों में प्रोस्ट्रेट बीमारी के लक्षण भी दर्शाता है। सामान्य से अधिक बार यूरीन का आना भी इस बीमारी के लक्षण हैं।
यह लक्षण यूरीनेशन की फ्रिक्वेंसी या यूरीनेशन की तीव्र इच्छा से बहुत अलग है और यह पुरूषों में प्रोस्ट्रेट बीमारी के लक्षण भी दर्शाता है। सामान्य से अधिक बार यूरीन का आना भी इस बीमारी के लक्षण हैं।
अन्य लक्षण
अगर ब्लैडर कैंसर का शुरू में निदान न किया जाए तो बाद में इसमें यह सब लक्षण भी दिख सकते हैं जैसे-
- पीठ के निचले हिस्से में दर्द की अनुभूति।
- निचले पेट में एक गांठ।
- यूरीन या यूरीन के पारित होने में गंभीर मुश्किल या अभाव।
- कभी कभी कैंसर के हड्डी में मेटास्टेसिस होने पर और मंद दर्द।
ब्लैडर कैंसर क्या है
ब्लैडर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को ब्लैडर कैंसर कहते है। ब्लैडर की बाहरी दीवार की मांसपेशियों की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्यू, एडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है।
ब्लैडर कैंसर महिलाओं और पुरूषों दोनों को ही हो सकता है। लेकिन महिलाओं में यह कैंसर अधिक होता है। ब्लैडर कैंसर के कई कारण है, प्रॉस्टेट ग्रंथि का बढ़ना, मूत्रमार्ग में संकुचन होना, गर्भ के समय आने वाली समस्याएं, मूत्राशय में पथरी का होना, गर्भपात होना, किसी बीमारी के कारण इत्यादि ब्लैडर इंफेक्शन के जिम्मेदार है।
कोशिकाओं की परत के नीचे मांसपेशियों की एक परत होती है जो कि ब्लैडर के सिकुड़ने के साथ यूरीन को निष्कासित करती है जिससे यूरीन यूरेथ्रा नामक ट्यूब से निष्कासित किया जाता है।
कोशिकाओं की परत के नीचे मांसपेशियों की एक परत होती है जो कि ब्लैडर के सिकुड़ने के साथ यूरीन को निष्कासित करती है जिससे यूरीन यूरेथ्रा नामक ट्यूब से निष्कासित किया जाता है।
ब्लैडर की बाहरी दीवार की मांसपेशियों की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्यू, एडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है। ब्लैडर कैंसर ब्लैडर की परत से शुरू होता है। लगभग 70 से 80 प्रतिशत ब्लैडर कैंसर के मरीज़ों में कैंसर का पता तभी लग जाता है जबकि यह बाहर सीमित होता है, बाहरी सतह में होता है और ब्लैडर की दीवार की आंतरिक सतह में होता है।
कैंसर जब ब्लैडर की बाह्य दीवार में शुरू होता है तो इसे सुपरफीशियल कैंसर कहते हैं और यह असामान्य कोशिकाओं में आइसोलेटेड पैच की तरह दिखता है। अगर ब्लैडर की आंतरिक दीवार पर उंगलीनुमा निकला हुआ हिस्सा पाया गया तो इसे पैपिलरी ट्रांजिंशनल सेल कैंसर कहते हैं।
कभी–कभी ट्यूमर का पता तब लगता है जबकि यह गहरे तौर पर ब्लैंडर की आंतरिक दीवार से लेकर लिम्फ नोड्स और दूसरे अंग में फैल चुका होता है।
कैंसर जब ब्लैडर की बाह्य दीवार में शुरू होता है तो इसे सुपरफीशियल कैंसर कहते हैं और यह असामान्य कोशिकाओं में आइसोलेटेड पैच की तरह दिखता है। अगर ब्लैडर की आंतरिक दीवार पर उंगलीनुमा निकला हुआ हिस्सा पाया गया तो इसे पैपिलरी ट्रांजिंशनल सेल कैंसर कहते हैं।
कभी–कभी ट्यूमर का पता तब लगता है जबकि यह गहरे तौर पर ब्लैंडर की आंतरिक दीवार से लेकर लिम्फ नोड्स और दूसरे अंग में फैल चुका होता है।
ब्लैडर कैंसर का एक और प्रकार है जिसे कि कारसिनोमा इन सीटू कहते हैं, जिसका अर्थ है कि यह कैंसर सिर्फ उसी स्थान पर रहता है जहां पर इसकी शुरूआत हुई होती है। हालांकि यह कैंसर ब्लैडर को बहुत गहराई से नहीं प्रभावित करता है लेकिन इसके कुछ लक्षण हैं, यूरीनेशन के दौरान जलन होना। ऐसा भी हो सकता है कि चिकित्सक द्वारा साइटोस्कप से जांच करने के बाद भी यूरोलोजिस्ट इस बीमारी को ना पकड़ पाये। जांच के लिए ब्लैडर की बाह्य दीवार का जो हिस्सा लाल लगे वहां की बायोप्सी करनी होती है।
इसका पता एक दूसरी जांच से भी लगाया जाता है जिसे कि यूरीन साइटालाजी कहते हैं और इसमें यूरीन की कोशिकाओं की जांच की जाती है। इस जांच में यूरीन का एक नमूना लिया जाता है और माइक्रोस्कोप के अंदर उसकी जांच कर कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाया जाता है।
ब्लैडर कैंसर के तीन प्रकार हैं और सभी में अलग–अलग तरह की कोशिकाएं होती हैं
1. लगभग 90 प्रतिशत ब्लैडर के कैंसर ट्रांजि़शनल सेल कार्सिनोमाज़ कहलाते हैं।
2. 6 से 8 प्रतिशत स्क्वामस सेल कार्सिनोमा।
3. 2 प्रतिशत एडेनोकार्सिनोमाज़ होते हैं।
एक और प्रकार का परजीवी संक्रमण जिसे कि सीज़ोसोमियासिस कहते हैं वो ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ाता है। वो मरीज़ जिनमें लम्बे समय से ब्लैडर की पथरी है उनमें ब्लैडर की दीवार पर सूजन और लम्बे समय तक जलन के कारण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। वो मरीज़ जिनमें पहले कभी ब्लैडर कैंसर हो चुका है उनमें इस बीमारी के दोबारा होने की आशंका होती है।
ब्लैडर कैंसर के तीन प्रकार हैं और सभी में अलग–अलग तरह की कोशिकाएं होती हैं
1. लगभग 90 प्रतिशत ब्लैडर के कैंसर ट्रांजि़शनल सेल कार्सिनोमाज़ कहलाते हैं।
2. 6 से 8 प्रतिशत स्क्वामस सेल कार्सिनोमा।
3. 2 प्रतिशत एडेनोकार्सिनोमाज़ होते हैं।
एक और प्रकार का परजीवी संक्रमण जिसे कि सीज़ोसोमियासिस कहते हैं वो ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ाता है। वो मरीज़ जिनमें लम्बे समय से ब्लैडर की पथरी है उनमें ब्लैडर की दीवार पर सूजन और लम्बे समय तक जलन के कारण कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। वो मरीज़ जिनमें पहले कभी ब्लैडर कैंसर हो चुका है उनमें इस बीमारी के दोबारा होने की आशंका होती है।
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