Wednesday, May 21, 2014

देशी दही के खिलाफ

दही
हमारे देश में घर से कोई कहीं जाने लगता है तो शगुन के लिए दही खिलाने का रिवाज है। मतलब दही हमारे लिए एक आस्था भी है। दही में पलने वाला भला बैक्टीरिया हमारे पेट को सिर्फ कई रोगों से ही नहीं बचाता है बल्कि मान्यता है कि यह बुरी ताकतों से भी बचाता है। दही से बने मट्ठे के बारे में एक बहुत चर्चित कहावत है- जो खाए मट्ठा, वही होए पट्ठा। लेकिन लगता है, अब उस दही पर ही संकट आने वाला है। सरसों के तेल की तरह दही और उससे बने मट्ठे को बदनाम करने की कोई रणनीति बन रही हो तो उसमें आश्चर्य की बात नहीं। 

प्रोबायॉटिक्स फूड नए जमाने का क्रेज होने वाला है। ये ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें फायदा पहुँचाने वाले बैक्टीरिया मौजूद होते हैं। इन भोजन की गुणवत्ता इस बात से आँकी जाएगी कि उनमें फायदा पहुँचाने वाले बैक्टीरिया की संख्या कितनी है । खाद्य पदार्थों में अरबों-खरबों में बैक्टीरिया होने के दावे किए जाएँगे। खमीर उठे हुए खाद्य पदार्थों में शरीर को फायदा पहुँचाने वाले ये बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं। पेट और आँत में ये बैक्टीरिया जब तक मौजूद रहते हैं किसी दुष्ट बैक्टीरिया के वहाँ फटकने का सवाल ही नहीं। इसमें डायरिया रोकने, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने सहित अनेक गुण होते हैं। बाजार में इस तरह के दावे करने वाले प्रोबायॉटिक फूड व ड्रिंक्स की भरमार हो रही है । 


लेकिन भारत के खाद्य बाजार पर काबिज होने की योजना बना रही प्रोबायॉटिक्स फूड व ड्रिंक बनाने वाली मल्टीनेशनल कंपनियों को घर-घर में बनने वाली दही की लोकप्रियता खटक रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध की देश की सबसे बड़ी संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा प्रोबायॉटिक फूड को नियंत्रित करने के लिए पिछले महीने राजधानी में आयोजित खाद्य वैज्ञानिकों के सम्मेलन में देशी दही के खिलाफ चल रही साजिश की बू साफ आ रही थी। 

आईसीएमआर ने कहा है कि अगले साल तक प्रोबायॉटिक फूड को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएँगे। सम्मेलन का सारांश बताने के लिए आयोजित प्रेस सम्मेलन में मौजूद कुछ वैज्ञानिक, जिसमें आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक भी थे, बार-बार यह साबित करने पर तुले हुए थे कि देशी दही में उतने गुण नहीं हैं जितने दूसरे प्रोबायॉटिक्स दही व फूड में हैं। 

वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कुछ डॉक्टरों द्वारा घर में बनने वाली दही को लेकर किए गए शोध का उल्लेख कर रहे थे। शोध का निष्कर्ष है कि बच्चो में डायरिया को रोकने में देशी दही उतनी प्रभावी नहीं हुई है। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि उस संवाददाता सम्मेलन को प्रायोजित किया था जापानी जैसे नाम वाले एक प्रोबायॉटिक फरमेंटेड मिल्क ड्रिंक की कंपनी ने। 

दही










हैदराबाद स्थित सरकारी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के पूर्व महानिदेशक बी. शिव कुमार का कहना है कि देशी दही व मट्ठा पीने के बड़े फायदे हैं। घर में बनने वाली दही एक बेहतरीन प्रोबायॉटिक्स खाद्य पदार्थ है। उसे दोयम दर्जे का करार नहीं दिया जा सकता है। सही बात यह है कि देशी दही से तुलना कर ही अन्य प्रोबायॉटिक फूड बनाए जा रहे हैं। 


वे देशी दही के गुण में ही इजाफा करने के दावे कर रहे हैं। अब देखना है कि वे ऐसा कर पाते हैं या नहीं लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं हैं कि दही बेकार है। सबसे बड़ा सवाल है कि दही को जो स्वीकृति मिली हुई है, वह दूसरे प्रोबायॉटिक फूड को जल्दी नहीं मिलने वाली है। जिन बच्चों को दूध नहीं पचता, उन्हें भी घर में बनी दही दी जाए तो उन्हें फायदा होता है। 

आयुर्वेद के अनुसार भी दही की बड़ी तासीर है। जान-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. देवेंद्र त्रिगुणा का कहना है कि देशी दही का कोई जबाव नहीं है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल घटता है। खुलकर पेशाब आता है। देशी दही दिल व लीवर के लिए भी फायदेमंद है लेकिन हम मट्ठा पीने की सलाह अधिक देते हैं क्योंकि दही का तत्व (रसायन) वही है। 

भारत में दही एक परंपरा है। पंजाबियों का खाना ही लस्सी से शुरू होता है। वहाँ के गाँवों में लस्सी से ही मेहमानों का स्वागत होता है। जनवरी में बिहार में तो एक दही पर्व ही होता है इसलिए मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए दही को बेदखल करना उतना आसान तो नहीं होगा लेकिन इसकी कोशिश शुरू हो गई है। घर में बनी दही के सामने डिब्बाबंद दही की कोई औकात नहीं है। 

आने वाले समय में बाजार में प्रोबायॉटिक आइसक्रीम, डिब्बाबंद दही, चिप्स एवं खाने की तमाम चीजों की भरमार होगी बिल्कुल जंक फूड की तरह। प्रोबायॉटिक फूड को लेकर आईसीएमआर अगले साल गाइडलाइंस जारी कर देगी। इस दिशा निर्देश के लागू हो जाने के बाद कंपनियों के लिए फायदे के दावे करना उतना आसान नहीं होगा लेकिन घर में माँ द्वारा जमाई गई दही जाँची परखी है इसलिए प्रोबायॉटिक फूड की भीड़ में दही को भूलने का नहीं।
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