Saturday, May 3, 2014

पितृ दोष /पितृ दोष के सरल उपाय /Pitradosh in the House/pawan sinha astro uncle/

पितृ दोष के विशेष योग और उपाय
जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है. यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है. सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है. तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है.
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं. जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है. इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-

    जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है.

    सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.
    किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है.
    पितृ दोष


जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है.

 पितृ दोष के सरल उपाय  

जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं। जैसे प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
दूसरे भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों, चतुर्थ भाव में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में नवम में भाग्योन्नति में बाधाएँ तथा दशम भाव में पितृ दोष हो तो सर्विस या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं। प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।
किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (6,8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रांति को लाल वस्तुओं का दान कर तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शांति होती है।
चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।
इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव,आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बंधुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।
दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है। यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है।
अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा संतान के कारण कष्ट होते हैं। यदि पंचमेश संतान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी संतान सुख में कमी होती है।


इस प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृ दोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुंडली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृ दोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं। अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, संतान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब्, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएं तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृ दोष हो, तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।
जीवित माता-पिता एवं भाई-बहनों का भी आदर-सत्कार करना चाहिए। हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ पितृभ्यः नमः मंत्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।
हर संक्रांति, अमावस एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।
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क्या है....स्वस्थ सुन्दर, मेधावी, संस्कारी संतान प्राप्ति के सरल वास्तु उपाय....?
स किसी दंपत्ति को विवाह के वर्षो बाद स्वस्थ होने के बावजूद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, इस समस्या या दोष 

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का एक प्रमुख कारण कुंडली दोष अथवा पितृ दोष एवं घर का वास्तुदोष भी होता है।
1- यदि घर का आंगन पूर्व पश्चिम जादा लम्बा है तो वंश वृद्धि नहीं होती, आंगन का आयताकार उत्तर दक्षिण जादा होना या चौकोर होना आवश्यक है 
2 - यदि घर की पूर्व दिश बाधित होगी तो भी सांतव वृद्धि में बाधा होती है और दक्षिण का खुला या हल्का होना बार बार संतान की हानि कराता है |
3 - यदि घर के दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य ) और उत्तर पूर्व (इशान) में दोष होगा तो यह परिवार में पितृ दोष का सूचक है, ऐसी इस्थ्ती में भी संतान नहीं होती |  
4 - नव दंपत्ति को शुरु के कुछ काल लगभग एक वर्ष तक घर के उत्तर पश्चिम में रहना गर्भ धारण के लिए लाभकारी होता है |
5 - जिन दम्पतियों का विवाह हुए काफी समय हो गए और गर्भधारण अथवा संतान प्राप्त न हो रही हो तो उन्हें हमेशा घर के पश्चिम, दक्षिण पश्चिम  (नैऋत्य ) या दक्षिण दिशा का कमरा देना चाहिए।
६ - शयन कक्ष की उत्तर - पश्चिम दीवार पर धातु से बनी कोई सौम्य, सात्विक एवं आकर्षक वस्तु लगाएं।
7 - गर्भधारण के बाद  दक्षिण पश्चिम  (नैऋत्य ) में रहे व सोने की व्यस्था दक्षिण सर रख कर करे तथा संतान के जन्म तक बिस्तर की दिशा ना बदलें।
८ - कमरे के उत्तर - पश्चिम छोर पर बच्चों के समूह की तस्वीर टांगे। इससे सामान्य प्रसव में सहायता मिलती है।
9 - ऐसी स्त्री को माणिक या मूंगा पहनने से विशेष लाभ मिलता है।
10 - इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि गर्भ धारण करने के बाद उसके बिस्तर के नीचे की झाड़ू ना लगाएं।
11 - ऐसे काल में वृद्धो व गुरु की सेवा करे |
12 - हरिवंश पुराण का पाठ संतान गोपाल मंत्र का जाप तथा पितृ दोष निवारण घर में अवश्य कराये |
वैभव Nath Sharma
पितृदोष निवारण हेतु निम्नलिखित उपाय करें |
* नियमित वास्तु शुद्धि करें !
* दत्तात्रेय देवताके चित्र या मूर्तिकी प्रतिदिन पूजा करें |
* किसी ब्राह्मणको प्रत्येक मास अपने घरके मुखियाकी मृत्यु तिथिपर और तिथिकी जानकारी न होनेपर, अमावस्याके दिन भोजन करवाएं, यह संभव न हो, तो ब्राह्मणको भोजन हेतु कुछ पैसे प्रत्येक महीने उस तिथिपर दें | (इस तिथिपर दरिद्रको भोजन करानेसे पितृ दोष निवारणमें कोई सहायता नहीं मिलती |)
* छह घंटे नियमित “श्री गुरुदेव दत्त” का जप करें |
* दत्तात्रेय देवतासे भावपूर्ण प्रार्थना कुछ इस प्रकार करें —
“हे दत्तात्रेय देवता, जो भी पितर मेरे परिवारके पुरुष वर्गके जीविकोपार्जनके मार्गमें अडचण निर्माणकर रहे हैं, उनसे आप हमारा रक्षण करें और हमारे अडचनका निराकरण करें, हमारे परिवारके सभी सदस्योंके चारों ओर अभेद्य सुरक्षा कवच निर्माण होने दें | अपनी कृपादृष्टि हमपर बनाए रखें, हम आपके शरणागत हैं” | यह प्रार्थना नामजपके साथ-साथ आप दिनमें जितनी अधिक बार कर सकते हैं, करें |
* घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामनेसे या पूजा घरसे हटा दें | उसे या तो विसर्जित करें, या अलमारीमें एक श्वेत वस्त्रमें बांधकर रख दें, श्राद्धके दिन यदि निकालना चाहें, तो निकाल सकते हैं|
* अधिकसे अधिक लोगोंको दत्तात्रेयका जप एवं पितृ-दोष निवारण हेतु सारे मुद्दे बताएं |
* घरमें काले रंगके वस्त्रका प्रयोग, यथासंभव न करें, सनातन धर्ममें काले रंगके वस्त्रको शनि-दोष निवारण हेतु या मकर संक्रांति के दिन पहननेके अलावा उस वस्त्रका प्रयोग साधारण व्यक्तिके लिए निषेध किया गया है |
* पितृपक्षमें ब्राह्मण भोजन कराएं |
* पितृपक्षमें प्रतिदिन ७२ माला ‘श्री गुरुदेव दत्त’जप करें
* पितृपक्षमें घरके पुरुषने पितरोंको प्रतिदिन जल-तिल तर्पणकर, श्राद्ध करना चाहिए |
* संत कार्य या धर्मकार्यमें यथाशक्ति तन-मन-धनसे योगदान करें |

 श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। 
पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसी को श्राद्ध कहते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म में, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्घ्य समर्पित करते हैं। यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है जिसे 'श्राद्ध' कहते हैं।







 


पितृ-दोष
 पंचमेश और लाभेश भाव में आया राहु, केतु पितृदोष का निर्माण करता हैं एवं शत्रु भाव में आया और व्यय भाव में आया राहु , केतु भी जातक की कुण्डली में पितृ-दोष का कारक माना जाता हैं। यदि इन दोनों भावों में चन्द्र / केतु और राहु , केतु की युति आती हैं तो उस जातक का भगवान ही मालिक होता हैं। इसके कारण पारिवारिक कलह , व्यवसाय में व्यवधान , पढ़ाई में मन न लगना , सपने आना, सपनों में नाग दिखना, पहाड़ दिखना, पूर े हुए कार्य का बीच में बिगड़ जाना , आकाश में विचरण करना , हमेशा अनादर पाना, मन में अशान्ति रहना , शान्ति में व्यवधान , कौआ बैठना , कौओं का शोरगुल हमेशा अपने घर के आस-पास होना पितृ-दोष (कालसर्प योग) की निशानी होेता हैं। इसका उपाय किसी विद्वान पण्डित से ब्रह्म सरोवर, पुष्कर (राजस्थान) या उज्जैन जाकर शिप्रा किनारे सिद्ध वट पर पूजा अर्चना कर पितृ शान्ति करवानी चाहिए। पितृ-दोष , काल सर्प या नारायण बली का निवारण किसी अच्छे व योग्य पण्डित के द्वारा ही करवाना चाहिए ।


 पितृ-दोष निवारण के उपाय: -


1 प्रतिदिन ‘‘सर्प सूक्त‘‘ का पाठ भी कालसर्प योग में राहत देता हैं ।
 2 ऊँ नमः शिवाय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें , नाग पंचमी का वृत करें, नाग प्रतिमा की अंगुठी पहनें 3 कालसर्प योग यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर नित्य पूजन करें । घर एवं दुकान में मोर पंख लगाये । 
4 ताजी मूली का दान करें । मुठ्ठी भर कोयले के टुकड़े नदी या बहते हुए पानी में बहायें ।
5 महामृत्युंजय जप सवा लाख , राहू केतु के जप, अनुष्ठान आदि योग्य विद्धान से करवाने चाहिए । 
6 नारियल का फल बहते पानी में बहाना चाहिए । बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए।
 7 पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए । 
8 शिव उपासना एवं रूद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने से यह योग शिथिल हो जाता हैं । 
9 सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के दिन सात अनाज से तुला दान करें । 
10 72000 राहु मंत्र ‘‘ऊँ रां राहवे नमः‘‘ का जप करने से काल सर्प योग शांत होता हैं । 
11 राहु एवं केतु के नित्य 108 बार जप करने से भी यह योग शिथिल होता हैं । 
राहु माता सरस्वती एवं केतु श्री गणेश की पूजा से भी प्रसन्न होता हैं ।
 12 हर पुष्य नक्षत्र को महादेव पर जल एवं दुग्ध चढाएं तथा रूद्र का जप एवं अभिषेक करें । 
13 हर सोमवार को दही से महादेव का ‘‘ऊँ हर-हर महादेव‘‘ कहते हुए अभिषेक करें । 
14 राहु-केतु की वस्तुओं का दान करें । राहु का रत्न गोमेद पहनें । चांदी का नाग बना कर उंगली में धारण करें । 
15 शिव लिंग पर तांबे का सर्प अनुष्ठानपूर्वक चढ़ाऐ। पारद के शिवलिंग बनवाकर घर में प्राण प्रतिष्ठित करवाए । 
16 लाल मसुर की दाल और कुछ पैसे प्रातःकाल सफाई करने वाले को दान करे । कुछ कोयले पानी में बहावें । 
17 नारायणबली, नागबली अथवा त्रिपिण्डी श्राद्ध करें इससे कुछ लाभ मिलता हैं । यह अनुष्ठान ब्रह्म सरोवर पुष्कर (राजस्थान), सिद्धवट, उज्जैन (म0प्र0), गया, तक्षकपीठ (इलाहाबाद संगम) , विश्व प्रसिद्ध तिरूपति बाला जी के पास काल हस्ती शिव मंदिर में भी कालसर्प योग शान्ति कराई जाती हैं। त्रयंबकेश्वर में व केदारनाथ में भी शान्ति कराई जाती हैं । गेहूॅ या उड़द के आटे की सर्प मूर्ति बनाकर एक साल तक पूजन करने और बाद में नदी में छोड़ देने तथा तत्पश्चात नाग बलि कराने से काल सर्प योग शान्त होता हैं 
18 पितरों के मोक्ष का उपाय करें । श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध श्रृृद्धा पूर्वक करना चाहिए । 
19 कुलदेवता की पूजा अर्चना नित्य करनी चाहिए । 
20 यदि वैवाहिक जीवन में बाधा आ रही हो तो पत्नि के साथ सात शुक्रवार नियमित रूप से किसी देवी मंदिर में सात परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते में मक्खन और मिश्री का प्रसाद रखें । पति पत्नि एक -एक सफेद फूल अथवा सफेद फूलों की माला देवी माँ के चरणों में चढाए । 
21 नाग योनी में पड़े पित्रों के उद्धार तथा अपने हित के लिए नागपंचमी के दिन चाॅदी के नाग की पूजा करें। 
22 अपने शयन कक्ष में लाल रंग की चादर, तकिये का कवर, तथा खिड़की दरवाजोे में लाल रंग के ही पर्दो का उपयोग करें । 
23 हानि एवं हीन भावना से बचने हेतु हिंजड़ों को वर्ष में एक या दो बार नवीन वस्त्र, फल, मिष्ठान, सुगंधित तेल आदि का दान करें..
Courtesy Pt Ashu Bahuguna G.
सूर्य के कारण है पितृ दोष तो करें ये 7 चमत्कारी उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसे पितृ दोष है या नही और यदि है किन ग्रहों के कारण। उन ग्रहों के उपाय कर इस दोष के प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है। ज्योतिषिय मत के अनुसार पितृ दोष होने का एक कारण सूर्य की अशुभ ग्रहों के साथ बन रही युति भी है। यदि आपकी कुंडली में भी इसी वजह से पितृ दोष बन रहा है तो नीचे लिखे उपाय करें-
- रविवार के दिन घर में विधि-विधान पूर्वक सूर्य यंत्र स्थापित करें। रोज इस यंत्र का पूजन विधि-विधान पूर्वक करें। 
- सूर्य को रोज तांबे के लोटे में जल उसमें लाल फूल, कुंकुम व चावल मिला कर अध्र्य दें।
 - इस मंत्र का जप रोज करें। मंत्र जप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए
- ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।। 
 पांच मुखी रूद्राक्ष धारण करें व रोज 12 ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। 
  - बुजुर्गों का अपमान न करें तथा उनकी मदद का प्रयास करें। 
रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से निकलते समय गुड़ खाएं। 
- लग्न के अनुसार सोने ये तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण करें।
 by d.d.ujjain
 पितृ दोष के विशेष योग और उपाय


जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है.
 यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है.
 सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है?
 कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है. 
तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है. 
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं.
 जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है.
 इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है. 
पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-   
   जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है.
 इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है.   
  सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.   
  किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है.    
 जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना बनती है. 
 उपाय  Remedies  
   यदि आपकी कुण्डली में उपरोक्त पितृ दोष में से कोई एक बन रहा है तब आपको जिस रविवार को संक्रांति पड़ रही है या अमावस्या पड़ रही है उस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए. 
उन्हें यथा संभव दक्षिणा भी देनी चाहिए. पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव में कमी आती है.   
  जन्म कुंडली में चंद्र-राहु, चंद्र-केतु, चंद्र-बुध, चंद्र-शनि, आदि की युति से मातृ दोष होता है. यह दोष भी पितृ दोष की ही भाँति है.     इन योगों में चंद्र-राहु, और सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग कहते हैं. यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह जड़त्व योग बनता है. इन योगों के प्रभावस्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं. वैसे चंद्र की युति राहु के साथ कभी भी शुभ नही मानी जाती है. इस युति के प्रभाव से माता या पत्नी को कष्ट होता है, मानसिक तनाव रहता है, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बांधवों से वैर-विरोध, परिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के फल मिल सकते हैं.    
 जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रही हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है.    
 यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी रहती है.   
  बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृ दोष की कुंडली बनती है और इस दोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है.  
   इन योगों के अतिरिक्त कुंडली में कई योग ऎसे भी बन जाते हैं जो कई प्रकार से कष्ट पहुंचाने का काम करते हैं. जैसे पंचमेश राहु के साथ यदि त्रिक भावों (6, 8, 12) में स्थित है और पंचम भाव शनि या कोई अन्य क्रूर ग्रह भी है तब संतान सुख में कमी हो सकती है. शनि तथा राहु के साथ अन्य शुभ ग्रहों के मिलने से कई तरह के अशुभ योग बनते हैं जो पितृ दोष की ही तरह बुरे फल प्रदान करते हैं.  पितृ दोष की शांति के विशेष उपाय | यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तब वह सरल उपायों के द्वारा भी पितृ दोष के प्रभाव को कम कर सकता है.
 यह उपाय निम्नलिखित हैं :-    
  यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब उस व्यक्ति को अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर उन्हें सम्मानित करना चाहिए. पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, अपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्र और दान-दक्षिणा आदि देनी चाहिए. नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए. 
    जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए. भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए. धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए.  


  प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और “ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करें. उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है.   

  प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें.  
   प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए. पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए. त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करना, पंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठ, पूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए. इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.   
  पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा


खिलाना चाहिए. कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए. इससे शुभ फल मिलते हैं.     श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए. सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए.  
   पीपल के वृक्ष पर मध्यान्ह में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएँ. संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. ब्राह्मण को भोजन कराएँ. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है.     
सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें. ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है.   
  प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है.   
  कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है.    
 ब्राह्मणों को गोदान, कुंए खुदवाना, पीपल तथा बरगद के पेड़ लगवाना, विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमदभागवत गीता का पाठ करना, पितरों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला, आदि बनवाने से भी लाभ मिलता है. 
 पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय | 
पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है.
 इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :-
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है. 
2. मातृ दोष | 
यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है. मातृ दोष के शांति उपाय | यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है. मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है. 
3. भ्रातृ दोष |
 तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है. भ्रातृ दोष के शांति उपाय | भ्रातृ दोष की शांति के लिए श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए.
 4. सर्प दोष | 
यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है. सर्प दोष के शांति उपाय | सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए, उन्हें वस्त्र, गाय दान, भूमि दान, तिल, चांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें. 
5. ब्राह्मण श्राप या दोष | 
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरु, मंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधा, सुख में कमी या संतान हानि होती है. ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय | ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है.
 6. मातुल श्राप |
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है. मातुल श्राप के शांति उपाय | मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुल, तालाब, नल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है. 
7. प्रेत श्राप | 
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है. यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं. प्रेत श्राप के शांति उपाय |
 प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है. गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.अगर आपको संतान प्राप्ति नहीं हो रही है:स्कंदमाता देवी के उपाय : 
 तो आप लौंग और कपूर में अनार के दाने मिला कर माँ दुर्गा को आहुति दे जरुर लाभ होगा | संतान प्राप्ति का सुख मिलेगा |  पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय | 
पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है. इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :- 
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है. 
2. मातृ दोष | यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है. मातृ दोष के शांति उपाय |  यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है. मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है. 3. 
भ्रातृ दोष | तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है. भ्रातृ दोष के शांति उपाय |  भ्रातृ दोष की शांति के लिए श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए. 4.
 सर्प दोष | यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है. सर्प दोष के शांति उपाय |  सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए, उन्हें वस्त्र, गाय दान, भूमि दान, तिल, चांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें. 
5. ब्राह्मण श्राप या दोष | किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरु, मंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधा, सुख में कमी या संतान हानि होती है. ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय |  ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है. 6. मातुल श्राप | यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है. मातुल श्राप के शांति उपाय |  मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुल, तालाब, नल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है. 7. प्रेत श्राप | किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है. यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं. प्रेत श्राप के शांति उपाय |  प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है. गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है.
 इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :- 

 यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है. 

संतान प्राप्ति में व्यवधान यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है.
 जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल सूर्य से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो हरिवंश पुराण का विधिवत श्रवण करके उसे दान करें |   जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल चन्द्र से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो रामेश्वर तीर्थ में स्नान करें ,एक लक्ष गायत्री मन्त्र का जाप कराएं तथा चांदी के पात्र में दूध भर कर दान दें | 
  जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल मंगल से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो भूमि दान करें ,प्रदोष व्रत करें |   जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल बुध से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो विष्णु सहस्रनाम का जाप करें | 
 जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल गुरु से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो गुरूवार को फलदार वृक्ष लगवाएं ,ब्राह्मण को स्वर्ण तथा वस्त्र का दान दें | 
  जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल शुक्र से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो गौ दान करें , आभूषणों से सज्जित लक्ष्मी -नारायण की मूर्ति दान करें |  
जन्म कुंडली का संतान भाव निर्बल शनि से पीड़ित होने के कारण संतान सुख की प्राप्ति में विलम्ब या बाधा हो तो पीपल का वृक्ष लगाएं तथा उसकी पूजा करें ,रुद्राभिषेक करें और ब्रह्मा की मूर्ति दान करें |
 संतान गोपाल स्तोत्र ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि में तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम गतः | उपरोक्त मन्त्र की १००० संख्या का जाप प्रतिदिन १०० दिन तक करें | तत्पश्चात १०००० मन्त्रों से हवन,१००० से तर्पण ,१०० से मार्जन तथा १० ब्राह्मणों को भोजन कराएं |
 .संतान गणपति स्तोत्र  श्री गणपति की दूर्वा से पूजा करें तथा उपरोक्त स्तोत्र का प्रति दिन ११ या २१ की संख्या में पाठ करें |
. संतान कामेश्वरी प्रयोग उपरोक्त यंत्र को शुभ मुहूर्त में अष्ट गंध से भोजपत्र पर बनाएँ तथा षोडशोपचार पूजा करें तथा ॐ क्लीं ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवति संतान कामेश्वरी गर्भविरोधम निरासय निरासय सम्यक शीघ्रं संतानमुत्पादयोत्पादय स्वाहा ,मन्त्र का नित्य जाप करें |
 ऋतु काल के बाद पति और पत्नी जौ के आटे में शक्कर मिला कर ७ गोलियाँ बना लें तथा उपरोक्त मन्त्र से २१ बार अभिमन्त्रित करके एक ही दिन में खा लें तो लाभ होगा | | .पुत्र प्रद प्रदोष व्रत) शुक्ल पक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार हो उस दिन से साल भर यह प्रदोष व्रत करें |प्रातःस्नान करके पुत्र प्राप्ति हेतु व्रत का संकल्प करें |
 सूर्यास्त के समय शिवलिंग की भवाय भवनाशाय मजौ का सत्तू ,घी ,शक्कर का भोग लगाएं |न्त्र से पूजा करें | आठ दिशाओं में दीपक रख कर आठ -आठ बार प्रणाम करें | नंदी को जल व दूर्वा अर्पित करें तथा उसके सींग व पूंछ का स्पर्श करें | अंत में शिव पार्वती की आरती पूजन करें | 
. पुत्र व्रत (वराह पुराण ) भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को उपवास करके विष्णु का पूजन करें | अगले दिन ओम् क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपी जन वल्लभाय स्वाहा मन्त्र से तिलों की १०८ आहुति दे कर ब्राह्मण भोजन कराएं | 
बिल्व फल खा कर षडरस भोजन करें |
 वर्ष भर प्रत्येक मास की सप्तमी को इसी प्रकार व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति होगी | गर्भ मास के अधिपति ग्रह व उनका दान  गर्भाधान से नवें महीने तक प्रत्येक मास के अधिपति ग्रह के पदार्थों का उनके वार में दान करने से गर्भ क्षय का भय नहीं रहता | नींव में तुलसी की जड़ घर को बना
 क्या घर में दैवीय आपदा का प्रकोप है? क्या आपके घर में पितृ दोष है? कैसे पाएं इस समस्या से छुटकारा, जानिए आपका घर आपका वास्तु में। आज ही करें घर में पितृ दोष का उपाय

वास्तु सिद्धांत के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मकान बनाते समय उसकी नीव में तुलसी के पेड़ की जड़ ड़ाल दे या स्थापित कर दे तो आपका घर सदा के लिए सुरक्षित हो जाता है।
जो पहले से ही बनें घर में रह रहा हो वो घर के ब्रह्मस्थान में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं और जल देते रहें। ईशान कोण में भी तुलसी का पौधा लगाएं। पूर्णिमा के दिन दूध का अर्घ्य अवश्य दें। तुलसी का पौधा लगाने मात्र से ही घर में किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा से सुरक्षा मिलती है
आईबीएन-7
अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है। "पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है  विशेष- जिन जातकों की कुंडली में कालसर्प दोष है, वह जातक महाशिवरात्रि के अगले दिन किसी भी प्राण-प्रतिष्ठित शिव मंदिर में चांदी, तांबा अथवा पंचधातु से निर्मित नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाए तो उसका कासर्प दोष समाप्त हो जाता है  कुंडली के दोष मिटाने के उपाय - शिवजी की उपासना करें। - सोमवार का व्रत करें। - भगवान शिव पर चांदी का नाग अर्पण करें। - बिल्व पत्रों से 108 आहूतियां दें। - अपने इष्ट देवता की पूजा करें। - कुल के देवी देवता की पूजा करें। - पितृ दोष खत्म करने के लिए पितृ पूजा या तर्पण करें।   
 पितृदोष निवारण के उपाय डाॅ. संजय
, अर्थात हमारे पितरों या पूर्वजों द्व ारा किए गए कुछ ऐसे कर्म जो हमारे लिए श्राप बन जाते हैं। ये दोष हम पर पूर्वजों के ऋण होते हैं जिनके फल हमें अपने जीवन में भोगने पड़ते हैं। पितृ ण का सिद्धांत है - करे कोई, भरे कोई। पिता के पापों का परिणाम पुत्र को भोगना ही पड़ता है, जैसे कि महाराज दशरथ के हाथों हुई श्रवण कुमार की मृत्यु के पाप के परिणामस्वरूप उनके पुत्र भगवान राम को जंगलों में भटक कर दुख उठाना पड़ा। कहा गया है कि व्यक्ति को अपने जीवन में पितृ ऋण अवश्य चुकाना चाहिए ताकि उसके पितर तृप्त और शांत हों और उन्हें मुक्ति मिल सके। यदि उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी देखने में आता है कि हमारा कोई भी दोष नहीं होता, हमने कोई पाप कर्म नहीं किया होता, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ता है। यह पितृदोष के कारण होता है। इसके अतिरिक्त अज्ञानतावश हम अपने पूर्वजों को जो कष्ट देते हैं, वे भी हमारे दुखों का कारण बनते हैं। ऐसे कुछ कारण निम्न हो सकते हैं- पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास का अपमान करना, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण न करना, पशु पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करना, सर्प वध करना। पितृदोष के निवारण हेतु उपाय विधिपूर्वक उपाय करने से व्यक्ति स्वयं, अपने पितरों व आने वाली पीढ़ी को इस दोष के प्रभावों से बचा सकता है। इससे हमें अपने पितरों से सुखी व समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मिल जाता है। यहां पितृ दोष निवारण के कुछ प्रमुख उपायों का वर्णन प्रस्तुत है।  गुजरात के बड़ोदा जिले में नर्मदा नदी के तट पर चनोड़ तीर्थ में नारायण बली पूजा करनी चाहिए। यह क्षेत्र अन्य किसी पितृ तर्पण पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है।  नियमित श्राद्ध विधि के अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में कौओं, कुत्तों व जमादारों को खाना देना चाहिए।  लग्नानुसार भी उपाय किए जा सकते हैं जो इस प्रकार हैं। 
मेष: पीपल पर सुबह जल चढ़ाएं व सायं दीप जलाएं। वृष: नव दुर्गा पूजन करें व कन्याओं को खीर खिलाएं।
 मिथुन: किसी गरीब कन्या के विवाह या बीमारी में मदद करें।
 कर्क: दूध या उड़द के बने पदार्थ दान दें।
 सिंह: अन्न या शय्या दान करें। कन्या: शिव पूजन या गीता पाठ करें। 
तुला: सिंदूर, तिल, तेल व उड़द का दान दें।
 वृश्चिक: कमल पुष्प व गुग्गल की आहुति देकर हवन करें।
 धनु: कुल देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
 मकर: रुद्र पूजन या शिव महिमा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कुंभ: पितृ तर्पण व गीता पाठ करें। मीन: गणेश या हनुमान या भैरव जी का पाठ करें। तीर्थ स्थानों पर सविधि पिंड दान व तर्पण करने के लिए पितृ क्षेत्रों को पुराणों के अनुसार, पांच भागों में बांटा गया है- बोधगया, नाभिगया या वैतरण् ाी, पदगया या पीठापुर, मातृगया या सिद्धपुर व बदरीनाथ। इनमें से बोधगया क्षेत्र अति प्राचीन, प्रसिद्ध, पवित्र तीर्थ स्थान है जहां पुरखों व बुजुर्गों का पिंडदान किया जाता है। यह बिहार राज्य में फल्गू नदी के किनारे मगध क्षेत्र में स्थित है। इसे विष्णु नगरी भी कहते हैं। यहां अक्षय वट स्थान है जहां पितरों के निमित्त किया गया दान अक्षय होता है। पितृगण अपनी संतान से यह आशा करते हैं कि वे गया में पिंड दान करें और अपने पितृ ण से उऋण हों। नाभिगया: उड़ीसा राज्य में वैतरणी नदी के किनारे जाजपुर गांव में स्थित है। वैतरणी नदी के बारे में पुराणों में कहा गया है कि मृत्यु के पश्चात प्रत्येक व्यक्ति को इस नदी को पार करना ही पड़ता है। यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में शुभ कर्म किए होते हैं तो वह इस नदी को आसानी से पार कर जाता है। यहां पितृ तर्पण पूजा करने से हम अपने पुरखों को यह नदी पार करवा सकते हैं। पदगया: तमिलनाडु राज्य में पीठापुर में राजमंदरी स्टेशन के पास स्थित है। मातृगया: गुजरात राज्य के मेहसाना जिले में स्थित है। भगवान परशुराम ने अपनी माता का पिंडदान यहीं किया था। यहां बिंदु सरोवर के किनारे पिंडदान व श्राद्ध पूजा की जाती है। ब्रह्म कपाली: हिमालय की पहाड़ियों में बदरीनाथ के निकट एक शिला, जिसका नाम ब्रह्मकपाली है। कहा जाता है कि यहां पिंडदान व श्राद्ध करने से दोबारा श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती। इसके अतिरिक्त: सर्पपूजा, ब्राह्मणों को गौदान, कुआं खुदवाना, पीपल व बरगद के वृक्ष लगवाना, विष्ण् ाु मंत्रों का जप करना, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना, पिता को पूर्ण सम्मान देकर उन्हें खुश रखना, पितरों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि बनवाने से भी पितृ दोष शांत होता है। 
 पितृदोष और उसके उपाय
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं,लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं,मैने देखा है कि नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है,अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है। मै यहां पर पितृदोष को दूर करने का एक बढिया उपाय बता रहा हूँ,यह एक बार की ही पूजा है,और यह पूजा किसी भी प्रकार के पितृदोष को दूर करती है। सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।

एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।
क्या आप की कुंडली में पितर दोष है?
 इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है,अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है। 
 मै यहां पर पितृदोष को दूर करने का एक बढिया उपाय बता रहा हूँ,यह एक बार की ही पूजा है,और यह पूजा किसी भी प्रकार के पितृदोष को दूर करती है।  
]सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। 
 परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।


 पितृ दोष कारण और निवारण -

कुण्डली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है . इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है . महाऋषियों के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष बनता है . इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते है .
 पितृ दोष कारण और निवारण -
कुण्डली के नवम भाव को भाग्य भाव कहा गया है . इसके साथ ही यह भाव पित्र या पितृ या पिता का भाव तथा पूर्वजों का भाव होने के कारण भी विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है . महाऋषियों के अनुसार पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष  बनता है . इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते है .
सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख -दुखों से मिलकर बना है. पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड भी दे, परन्तु दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बने ही रहते है, फिर वे चाहें, संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में हो सकते है . पितृ दोष को समझने से पहले पितृ क्या है इसे समझने का प्रयास करते है .
पितृ क्या है? 
पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है . जो पित योनि को प्राप्त हो चुके है . ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं, परन्तु मोहवश या असमय मृ्त्यु को प्राप्त होने के कारण, आज भी मृ्त्यु लोक में भटक रहे है . अर्थात जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण (Pitra Dosha Niwaran) उपाय किये जाते है .
ये पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण, तथा पितृ्योनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है .
पितृ दोष कैसे बनता है? How Pitra Dosha Forms? 
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .
पितृ दोष के कारण - What is Pitra Dosh? 
पितृ दोष (Pitra Dosha) उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है . जैसे:- परिवार में अकाल मृ्त्यु हुई हों, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों . या फिर पितरों का विधी विधान से श्राद्ध न किया जाता हों, या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर, या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति कि कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू स्थिति के साथ प्रकट होता है .
नवम भाव क्योकि पिता का भाव है, तथा सूर्य पिता का कारक होने के साथ साथ उन्नती, आयु, तरक्की, धर्म का भी कारक होता है, इसपर जब राहू जैसा पापी ग्रह अपनी अशुभ छाया डालता है, तो ग्रहण योग के साथ साथ पितृ दोष बनता है . इस योग के विषय में कहा जाता है कि इस योग के व्यक्ति के भाग्य का उदय देर से होता है . अपनी योग्यता के अनुकुल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पडता है .
हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए . क्योकि देव कार्यो से अधिक पितृ कार्यो को महत्व दिया गया है . इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृ्प्त करना चाहिए . पितर कार्यो के लिये सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात आश्चिन मास का कृ्ष्ण पक्ष समझा जाता है .
पितृ दोष शान्ति के उपाय - Pitra Dosh Remedies 
आश्विन मास के कृ्ष्ण पक्ष में पूर्वजों को मृ्त्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष (Pitra Dosha) शान्त होता है .
इस पक्ष में एक विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की मृ्त्यु की तिथि न मालूम हो, तो ऎसे में आश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति होती है . इस तिथि को सभी ज्ञात- अज्ञात, तिथि- आधारित पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है .

पितृ दोष (Pitra Dosha) निवारण के अन्य उपाय Other Remedies for Pitra Dosha 
(1) पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
(2) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
(5) सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है.


(6) सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है
Astrologer Aditya mishra

पितृ दोष निवारण या काल शार्प की शांति करने का उपाय…
कालसर्पयोग मुख्या रूप से १२ पारकर के होते है जो मनुष्य के लिए बहुत ही कास्तकारी सीधा होते है , वे निम्न प्रकार के है
(1) अनंत काल सर्प योग, (२)कुलिक काल सर्प योग, (3) वासुकी काल सर्प योग,
(4) शंखपाल काल सर्प योग, (५)पदम् काल सर्प योग,(६) महापद्म काल सर्प योग,
(७) तक्षक काल सर्प योग,(८) कर्कोटक काल सर्प योग,(९) शंख्चूर्ण काल सर्प योग,
(10) पातक काल सर्प योग, (११) विषाक्त काल सर्प योग,(१२) शेषनाग काल सर्प योग, 
अगर आप की कुंडली में पित्रदोश या काल शार्प दोष है तो आप किसी विद्वान पंडित से इसका उपाय जरुर कराएँ.. आप खुद भी अपने कुंडली में देख सकते है की लग्न कुंडली में अगर रहू-केतु के बिच में सभी ग्रह हो तो काल शार्प दोष बनता है . और सूर्य के साथ रहू की युति (साथ) बनता है तो भी पित्र दोष बनता है, अगर किसी के परिवार में अकाल मृत्यु होती है तो भी ये दोष देखने में आता है ….
आप इन सरल उपायों को खुद कर के अपने जीवन में लाभ उठा सकते है…
(1) पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . या पीपल का पेड़ किसी नदी के किनारे लगायें और पूजा करें, इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
(२) आप शिवलिंग पर शर्पो का जोड़ा चांदी या ताम्बे का बनवाकर चधयेम, और रुद्रभिशेख करवाएं .
(3) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(4) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
(5) सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है ,
(6) अगर आप द्वाश ज्योतिर्लिन्ग्प का जाप करें तो महादेव मनुष्य को शुख-शांति प्रदान करते है
सोमनाथम ,मल्लिकर्जुना ,महाकालेश्वर , ओम्कारेश्वर , वैजनाथ , भीमाशंकर , रामेश्वरम, नागेश्वर ,
विश्वनाथ , त्रयम्बकेश्वर,केदारनाथ, सिद्देश्वर
सोमवती अमावश्य के दिन या नाग पंचमी पर या महाकालेश्वर मंदिर में जाकर इसकी शांति करें आप को अवश्य लाब होगा ,
ॐ काल शर्पेभ्यो नमः… अगर कोए इस मंत्र को बोल कर कच्चे दूध को गंगाजल में मिलाकर उसमे काला तिल डाले और बरगद के पेड़ में दूध की धारा बनाकर ११ बार परिक्रमम करें , या शिवलिंग पर ॐ नमः शिवाय बोलकर चढ़ाये तो शार्प दोष से मुक्ति मिलेगी…
कौशल पाण्डेय
 पितृदोष निवारण के कुछ सरल उपाय
               पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे जिस तिथि को पूर्वजों का निर्वाण हुआ हो उस तिथि को तिल, जौ, पुष्प, कुश, गंगाजल या शुद्ध जल से तर्पण, पिंडदान और पूजन करना चाहिए. उसके बाद योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र, फल एवं दान करना चाहिए. गाय, कौआ, पिपीलिका, श्वान को भी देना चाहिए. यह क्रम पंचबलि कहलाता है.
कुछ नियमित दिनचर्या में किए जाने वाले उपाय निम्न हैं :-
पिता का अपमान न करें और उनकी खुशी के लिए हरसंभव कोशिश करें. हर रोज माता-पिता और गुरु के चरण छूकर आशीर्वाद लेने से पितरों की प्रसन्नता मिलती है. अपने बड़े-बुज़ुर्गों का सदैव आदर करें.
प्रत्येक अमावस्या को गाय के जलते हुए उपले (कंडे, गोबर) पर तैयार शुद्ध भोज्य पदार्थ या खीर रखकर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों से प्रार्थना करें.
हर रोज संभव हो तो चिडिय़ा या दूसरे पक्षियों के खाने-पीने के लिए अन्न के दानें और पानी रखें.
प्रत्येक अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या को योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र आदि दान करने से पितृदोष के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं.
हर रोज तैयार भोजन में से तीन भाग गाय, कुत्ते और कौए के लिए निकालें और उन्हें खिलाएं.
किसी तीर्थ पर जाएं तो पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से तर्पण करना न भूलें.
सूर्योदय के समय सूर्य को देखकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें, इससे आपकी कुंडली मे सूर्य की स्थिति मजबूत होगी. सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य भी धारण कर सकते हैं, बशर्ते किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पहले कुंडली जांच लें.
हर शनिवार को पीपल या वट की जड़ों में दूध चढाएं.
पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष, विशेषकर पीपल लगाकर, उसकी सेवा करने से भी पितृदोष से राहत मिलती है.

 क्या है पितृ दोष और उसका निवारण

जन्म कुण्डली का नौवां घर धर्म का घर कहा जाता है। यही पिता का घर भी होता है। यदि किसी प्रकार से यह नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित हो जाए तो यह सूचना है कि पूर्वजों की इच्छाएं अधूरी रह गयी थीं। सूर्य, मंगल और शनि प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह कहे जाते है और कुछ लग्नों में अपना काम करते हैं लेकिन राहु और केतु सभी लग्नों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं। ज्योतिषविदों के मुताबिक, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार के तनाव में रहता है और उसकी शिक्षा पूरी नहीं हो पाती।वह जीविका के लिए तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है। यदि किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आ जाता है। पितृ दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोसों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसके जीवन से दूर रहता है। व्यक्ति की अनदेखी या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण समय से अर्पण न करने पर जो पितृ पिशाच योनि मे चले जाते हैं और दुखी रहते हैं। पितृ दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।
पितृदोष को दूर करने का एक बढ़िया उपाय एक बार की ही पूजा है। यह पूजा किसी भी प्रकार के पितृदोष को दूर करती है। सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास ही स्थित किसी पीपल के पेड़ के पास जाइये और उस पेड़ को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये। पीपल के पेड़ और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये, फिर उस पीपल के पेड़ की एक सौ आठ परिक्रमा दीजिये। हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई (जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो) पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड़ और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये। उनसे जाने-अनजाने में हुए अपराधों के लिए क्षमा मांग लीजिए। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। दूसरा उपाय है, जिसके तहत कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाए गए लड्डू हर शनिवार को दीजिए।
पितृ दोष निवारण के अन्य उपाय


(1) पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
(2) प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान
करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
(३) सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
(४) सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है.


(५) सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं,लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।
अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।


"पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।
एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।
पितृदोष निवारण हेतु निम्नलिखित उपाय करें:
* दत्तात्रेय देवताके चित्र या मूर्तिकी प्रतिदिन पूजा करें |
* किसी ब्राह्मणको प्रत्येक मास अपने घरके मुखियाकी मृत्यु तिथिपर और तिथिकी जानकारी न होनेपर, अमावस्याके दिन भोजन करवाएं, यह संभव न हो, तो ब्राह्मणको भोजन हेतु कुछ पैसे प्रत्येक महीने उस तिथिपर दें | (इस तिथिपर दरिद्रको भोजन करानेसे पितृ दोष निवारणमें कोई सहायता नहीं मिलती |)
* छह घंटे नियमित “श्री गुरुदेव दत्त” का जप करें |


* दत्तात्रेय देवतासे भावपूर्ण प्रार्थना कुछ इस प्रकार करें —
“हे दत्तात्रेय देवता, जो भी पितर मेरे परिवारके परूष वर्गके जीवीकोपार्जनके मार्गमें अडचण निर्माणकर रहे हैं, उनसे आप हमारा रक्षण करें, हमारे परिवारके सभी सदस्योंके चारों ओर अभेद्य सुरक्षा कवच निर्माण होने दें | अपनी कृपादृष्टि हमपर बनाए रखें, हम आपके शरणागत हैं” |
यह प्रार्थना नामजपके साथ-साथ आप दिनमें जितनी अधिक बार कर सकते हैं, करें |
* घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामनेसे, या पूजा घरसे हटा दें | उसे या तो विसर्जित करें, या अलमारीमें एक श्वेत वस्त्रमें बांधकर रख दें, श्राद्धके दिन यदि निकालना चाहें, तो निकाल सकते हैं |
* अधिकसे अधिक लोगोंको दत्तात्रेयका जप एवं पितृ-दोष निवारण हेतु सारे मुद्दे बताएं |
* घरमें काले रंगके वस्त्रका प्रयोग, यथासंभव न करें, सनातन धर्ममें काले रंगके वस्त्रको शनि-दोष निवारण हेतु, या मकर संक्रांति के दिन पहननेके अलावा उस वस्त्रका प्रयोग साधारण व्यक्तिके लिए निषेध किया गया है 
* पितृपक्षमें ब्राह्मण भोजन कराएं |


* पितृपक्षमें प्रतिदिन ७२ माला ‘श्री गुरुदेव दत्त’जप करें
* पितृपक्षमें घरके पुरुषने पितरोंको प्रतिदिन जल-तिल तर्पणकर, श्राद्ध करना चाहिए |
* संत कार्य या धर्मकार्यमें यथाशक्ति तन-मन-धनसे योगदान करें |
  पितृदोष
पितृदोष के निवारण के उपाय-
      पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे जिस तिथि को पूर्वजों का निर्वाण हुआ हो उस तिथि को तिल,जौ,पुष्प,कुश,गंगाजल या शुद्ध जल तर्पण, पिंडदान और पूजन करना चाहिए। उसके बाद गरीब ब्राह्मण को भोजन,वस्त्र,फल एवं दान करना चाहिए। गाय, कौआ, चींटी, काक, वृक्ष को भी भोग लगाना चाहिए। 
 १.    जिन लोगों को अपने पितरों की अंतिम तिथि ज्ञात ना हो वे लोग पितृमोक्ष अमावस्या को यह प्रक्रिया का सकते हैं।
 २.    जो लोग पीपल के वृक्ष को पूजते या जल देते हैं, या सोमवती अमावस्या को खीर अपने पितरों को अर्पित करते हैं, या हर अमावस्या को ब्राह्मण को वस्त्र,भोजन दान करते हैं, उन्हे पितृदोष के विपरीत प्रभाव से छुटकारा मिल जाता है।
 ३.    हर अमावस्या को गाय के उपले (कंडे, गोबरी) की राख पर खीर रखकर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों से अपनी गलती की क्षमा याचना करें
४.    अपने पिता एवं बड़े-बुज़ुर्गों का आदर करें, उनके आशीर्वाद से सूर्य की स्थिति मजबूत होती है
५.    सूर्योदय के समय सूर्य को देखकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें, इससे आपकी कुंडली मे सूर्य की स्थिति मजबूत होगी।
 ६.    सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य भी धरण कर सकते हैं, बशर्ते किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पहले कुंडली जांच लें।
 ७.    पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष लगाने पर भी पितृदोष से राहत मिलती है
  कुंडली के नवम भाव से जानें पितृदोष:-
जन्म कुंडली का नवम भाव बेहद महत्वपूर्ण भाव होता है। यह भाव पिता के सुख, आयु व समृद्धि का कारक है, वहीं यह जातक के स्वयं के भाग्य, तरक्की, धर्म संबंधी रुझान को बताता है।
सूर्य पिता का कारक होता है, वहीं सूर्य जातक को मिलने वाली तरक्की, उसके प्रभाव क्षेत्र का कारक होता है। ऐसे में सूर्य के साथ यदि राहु जैसा पाप ग्रह आ जाए तो यह ग्रहण योग बन जाता है अर्थात सूर्य की दीप्ति पर राहु की छाया पड़ जाती है। ऐसे में जातक के पिता को मृत्युतुल्य कष्ट होता है, जातक के भी भाग्योदय में बाधा आती है, उसे कार्यक्षेत्र में विविध संकटों का सामना करना पड़ता है। जब सूर्य और राहु का योग नवम भाव में होता है, तो इसे पितृदोष कहा जाता है।
सूर्य और राहु की युति जिस भाव में भी हो, उस भाव के फलों को नष्ट ही करती है और जातक की उन्नाति में सतत बाधा डालती है। विशेषकर यदि चौथे, पाँचवें, दसवें, पहले भाव में हो तो जातक का सारा जीवन संघर्षमय रहता है। सूर्य प्रगति, प्रसिद्धि का कारक है और राहु-केतु की छाया प्रगति को रोक देती है। अतः यह युति किसी भी भाव में हो, मुश्किलें ही पैदा करती है।
निवारण : पितृदोष के बारे में मनीषियों का मत है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण या पितरों के शाप के कारण यह दोष कुंडली में प्रकट होता है अतः इसका निवारण पितृ पक्ष में शास्त्रोक्त विधि से किया जाता है।
अन्य उपाय :
* प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा-वस्त्र भेंट करने से पितृदोष कम होता है।
* प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आह्वान करने व उनसे अपने कर्मों के लिए क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।
* पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है।
* सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।
* सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।
यह तय है कि पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है अतः इस हेतु मानसिक तैयारी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है।
 by Astro Bharti 
पितृ दोष एवं उसके प्रमुख योग रघुनाथ राम परिहार जन्म एवं मृत्यु दोनों अटल सत्य हंै। गीता में भी कहा गया है कि जन्म लेने वालांे की मृत्यु एवं मृत्यु को प्राप्त करने वालों का जन्म निश्चित है- जब तक कि उसे मोक्ष की प्राप्ति न हो जाए। इस संसार में ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जिसमें किसी की अकाल मृत्यु या आकस्मिक दुर्घटना से मृत्यु नहीं हुई हो। पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार इन आत्माओं का जन्म होता है। जन्म लेने से पूर्व तक इन्हें सब कुछ याद रहता है। जन्म लेने से पूर्व ये आत्माएं अपने क्षेत्र विशेष पर मंडराती रहती हैं जो खुश होने पर किसी को लाभान्वित भी कर सकती हैं और नाखुश होने पर परिवार को उजाड़ने में भी देर नहीं करतीं। भारतीय दर्शन के अनुसार पिता का लिया कर्ज पुत्र को चुकाना पड़ता है। इसी प्रकार अपने पूर्वजों द्व ारा किए गए कर्मों का कुछ भोग तो प्रत्येक जातक को करना ही पड़ता है। पूर्वजों को खुश रहने हेतु हिंदू धर्म में श्राद्ध, तर्पण की मान्यता भी है। श्राद्धादि करने के पश्चात जातक को आत्म संतुष्टि एवं उत्तरोत्तर प्रगति प्राप्त होती रहती है। आज कुछ लोग इस कर्म को भ्रामक बताते हैं लेकिन उनके द्वारा भी मजबूरी में ही सही जब यह कर्म उचित विधि विधान से संपन्न कर लिया जाता है तो उनका विश्वास भी अटल होता जाता है। मानव तीन गुणों रजोगुण, तमोगुण व सतोगुण से मिलकर बना है। उसमें जिस गुण की प्रधानता होती है उसी गुण के अनुसार उसकी श्रद्धा भक्ति भी केंद्रित रहती है। इनमें से सतोगुण प्रधान लोग देवी देवताओं में असीम श्रद्धा रखकर उपासना करते हैं तो रजोगुण प्रधान यक्ष पर पूर्ण विश्वास रखते हैं जबकि तमोगुणी लोग भूत प्रेत एवं मृत आत्मा पर आस्था रखकर उनके कर्म करते हैं एवं जीवन को उनके सहयोग से उज्ज्वल बनाने की कोशिश करते हैं। प्रेतात्माएं किसी स्त्री या पुरुष के शरीर में प्रवेश कर भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती रहती हैं तो रुष्ट हो जाने पर उनका अहित भी कर देती हैं। ये प्रेतात्माएं अधिकतर छाया रूप में अपने आस पास मंडराती रहती हैं लेकिन कुछ प्रेतात्माएं कुछ समय हेतु स्थूल रूप भी धारण कर लेती हंै। कहते हैं, और यह सत्य भी है, कि ऐसी आत्मा का दर्शन कुछ लोगों को होता रहता है। कृष्ण पक्ष एवं स्वच्छता के अभाव की स्थिति में इनका जोर रहता है। पितृ दोष के कारण जातक की आर्थिक स्थिति खराब रहती है, लगातार कठिन मेहनत करने के बावजूद उसे कहीं लाभ दिखाई नहीं देता। सुविधाएं यदि मिल भी जाएं तो हमेशा मन में अनहोनी की आशंका रहती है। अच्छे व्यवहार के बावजूद दुव्र्यवहार का सामना करना पड़ता है। इस दोष के कारण नौकरी में भी बार-बार परेशानियों, परिवार में हमेशा बीमारी, विवाह में रुकावट आदि की स्थिति बनी रहती है। ज्योतिष में नवग्रहों को आधार मानकर पूर्व जन्म एवं वर्तमान जन्म के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। नवग्रहों में बृहस्पति आकाश तत्व तो शनि वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है जबकि राहु चुंबकीय क्षेत्र का, सूर्य पिता का, चंद्र माता का, शुक्र पत्नी का और मंगल भाई का प्रतिनिधितव करता है। राहु एक छाया ग्रह है और प्रेतात्माएं भी छाया रूप में ही विद्यमान रहती हैं। अतः कुंडली म ंे राह ु की स्थिति किसी दोष का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है। यदि राहु सूर्य के साथ युति करे तो सूर्य को ग्रहण लगेगा। ऐसे में सूर्य के पिता का कारक होने के कारण पितृ दोष होता है। सूर्य व चंद्र के साथ राहु की युति भी पितृ दोष का निर्माण करती है। पितृ दोष के कुछ प्रमुख योग / लग्न व लग्नेश का कमजोर होकर स्थित होना। नीच लग्नेश के साथ राहु एवं शनि का युति और दृष्टि संबंध हो तो कुंडली पितृ दोष से ग्रस्त मानी जाती है। चंद्र लग्न व चंद्र लग्नेश, सूर्य लग्न व सूर्य लग्नेश पर जब राहु, शनि व केतु का पापी प्रभाव हो तो पितृ दोष होता है। इससे प्रभावित जातक मिर्गी, उन्माद और भ्रम से ग्रस्त होता है या उसकी प्रवृत्ति संकोची होती है। चंद्र लग्नेश व सूर्य लग्नेश नीच राशि में स्थित हों और लग्न में या लग्नेश के साथ युति या दृष्टि संबंध बनाते हों और उस पर राहु, शनि, मंगल व केतु का पापी प्रभाव हो तो पितृ दोष की स्थिति बनती है। शनि अशुभ भावेश होकर चंद्र से युति या दृष्टि संबंध बनाए या चंद्र शनि के नक्षत्र या उसकी राशि में हो तो भी पितृ दोष होता है। शनि का चंद्र के नक्षत्र या राशि में स्थित होना भी पितृ दोष का सूचक है। लग्नेश का त्रिक भावों में त्रिकेशों के साथ होना या त्रिकेशों के दृष्टि प्रभाव में होना, लग्नेश का त्रिकेशों के नक्षत्र में स्थित होना, त्रिकेशों का किसी भी प्रकार से लग्न, लग्नेश को प्रभावित करना ये सभी योग पितृदोष के सूचक हैं। यदि लग्नेश नीच राशि या नीच नवांश में हो तो पितृ दोष विशेष प्रभावी होता है। लग्नेश कुंडली में शत्रु राशि में निर्बल होकर स्थित हो और शनि, राहु, केतु व मंगल के पाप कर्तरी प्रभाव में हो और चंद्र व सूर्य त्रिक भाव में या त्रिकेशों के साथ स्थित हों तो पितृ दोष होता है। कुंडली में लग्न में गुरु नीच राशि में स्थित होकर पापी ग्रहों के प्रभाव में हो, नीच नवांश में होकर पापी ग्रहों के प्रभाव में हो या त्रिकेशों का उस पर युति या दृष्टि प्रभाव पड़ रहा हो तो जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है। जन्म कुंडली में बृहस्पति नीच राशि, नीच नवांश में षष्ठ या अष्टम भाव में स्थित हो और बृहस्पति लग्नेश, चंद्र लग्नेश या सूर्य लग्नेश हो तो पितृ दोष होता है। इस पर पापी ग्रहों का प्रभाव भी हो तो जातक पूर्णतया पितृदोष से ग्रस्त होता है। उसे जीवन में शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक समस्याओं का पग-पग पर सामना करना पड़ता है। कुंडली में द्वादश भाव में लग्नेश नीच राशि में या नीचस्थ बृहस्पति के साथ स्थित हो तो जातक को प्रेतात्माओं का शिकार होना पड़ सकता है। यदि उस पर राहु व शनि का अशुभ प्रभाव भी हो तो जातक को नीच संगति के कारण या गलत खान पान के कारण विशेष परेशानियां आती रहती हैं। वह व्यसनों से ग्रस्त रहता है और उस पर पितृ दोष भी अपना प्रभाव डालता रहता है। कुंडली में शनि लग्न में स्थित हो एवं लग्नेश पर राहु व केतु का प्रभाव हो और चंद्र व सूर्य नीच राशि या नीच नवांश में स्थित हों तो जातक पर पितृ दोष का प्रभाव रहता है। ऐसे लोग मानसिक रूप से परेशान एवं रात्रि में विशेष तौर पर व्यथित रहते हैं। कुंडली में द्वितीय भाव से परिवार, पंचम से इष्ट, नवम से भाग्य एवं द्वादश से मरणोत्तर गति का विचार किया जाता है। जब इन भावों के कारकों व भावेशों पर अशुभ पापी ग्रहों का प्रभाव हो, भाव कारक व भावेश दोनों निर्बल, अस्तंगत हों एवं केतु भी इन पर नीच राशि में होकर प्रभाव डाल रहा हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है। कुंडली में राहु एवं शनि दोनों किसी भी प्रकार से एक दूसरे को प्रभावित करते हों और लग्न व लग्नेश में से भी किसी को यदि इनमें से कोई प्रभावित करे तो जातक पितृदोष से पीड़ित होता है। नवम भाव में बृहस्पति व शुक्र की युति एवं दशम में चंद्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो तो जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है। कुंडली में शुक्र का राहु या शनि व मंगल द्व ारा पीड़ित होना भी पितृदोष का सूचक है। पंचम भाव में सूर्य तुला राशि एवं मकर कुंभ नवांश में हो और पंचम भाव पाप कर्तरी प्रभाव में हो तो पितृ दोष से संतान हानि होती है। पंचम में सिंह राशि हो, पंचम या नवम भाव में पापी ग्रह हो व सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो पितृ दोष के कारण संतान हानि होती है। लग्न व पंचम भाव में सूर्य व मंगल स्थित हों और शनि भी इनसे युति करे तथा राहु व बृहस्पति की युति अष्टम या द्वादश में हो या दशमेश पंचमेश पंचम दशम हो व लग्न पंचम पर शनि, राहु व मंगल का किसी भी प्रकार से प्रभाव हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है। जातक के संतान या तो होती नहीं या अल्प आयु वाली होती है। लग्नेश नीच राशि, नीच नवांश या शत्रु राशि में पंचमस्थ हो, पंचमेश व सूर्य की युति हो, लग्न व पंचम दोनों भावों पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को पितृ दोष के कारण संतान नहीं होती।
पितृदोष निवारण हेतु निम्नलिखित उपाय करें |
* नियमित वास्तु शुद्धि करें !


* दत्तात्रेय देवताके चित्र या मूर्तिकी प्रतिदिन पूजा करें |
* किसी ब्राह्मणको प्रत्येक मास अपने घरके मुखियाकी मृत्यु तिथिपर और तिथिकी जानकारी न होनेपर, अमावस्याके दिन भोजन करवाएं, यह संभव न हो, तो ब्राह्मणको भोजन हेतु कुछ पैसे प्रत्येक महीने उस तिथिपर दें | (इस तिथिपर दरिद्रको भोजन करानेसे पितृ दोष निवारणमें कोई सहायता नहीं मिलती |)
* छह घंटे नियमित “श्री गुरुदेव दत्त” का जप करें |
* दत्तात्रेय देवतासे भावपूर्ण प्रार्थना कुछ इस प्रकार करें —
“हे दत्तात्रेय देवता, जो भी पितर मेरे परिवारके पुरुष वर्गके जीविकोपार्जनके मार्गमें अडचण निर्माणकर रहे हैं, उनसे आप हमारा रक्षण करें और हमारे अडचनका निराकरण करें, हमारे परिवारके सभी सदस्योंके चारों ओर अभेद्य सुरक्षा कवच निर्माण होने दें | अपनी कृपादृष्टि हमपर बनाए रखें, हम आपके शरणागत हैं” | यह प्रार्थना नामजपके साथ-साथ आप दिनमें जितनी अधिक बार कर सकते हैं, करें |
* घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामनेसे या पूजा घरसे हटा दें | उसे या तो विसर्जित करें, या अलमारीमें एक श्वेत वस्त्रमें बांधकर रख दें, श्राद्धके दिन यदि निकालना चाहें, तो निकाल सकते हैं|
* अधिकसे अधिक लोगोंको दत्तात्रेयका जप एवं पितृ-दोष निवारण हेतु सारे मुद्दे बताएं |
* घरमें काले रंगके वस्त्रका प्रयोग, यथासंभव न करें, सनातन धर्ममें काले रंगके वस्त्रको शनि-दोष निवारण हेतु या मकर संक्रांति के दिन पहननेके अलावा उस वस्त्रका प्रयोग साधारण व्यक्तिके लिए निषेध किया गया है |
* पितृपक्षमें ब्राह्मण भोजन कराएं |
* पितृपक्षमें प्रतिदिन ७२ माला ‘श्री गुरुदेव दत्त’जप करें
* पितृपक्षमें घरके पुरुषने पितरोंको प्रतिदिन जल-तिल तर्पणकर, श्राद्ध करना चाहिए |
* संत कार्य या धर्मकार्यमें यथाशक्ति तन-मन-धनसे योगदान करें |

  उपाय | Remedies

    यदि आपकी कुण्डली में उपरोक्त पितृ दोष में से कोई एक बन रहा है तब आपको जिस रविवार को संक्रांति पड़ रही है या अमावस्या पड़ रही है उस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए. उन्हें यथा संभव दक्षिणा भी देनी चाहिए. पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव में कमी आती है.

    जन्म कुंडली में चंद्र-राहु, चंद्र-केतु, चंद्र-बुध, चंद्र-शनि, आदि की युति से मातृ दोष होता है. यह दोष भी पितृ दोष की ही भाँति है.
    इन योगों में चंद्र-राहु, और सूर्य-राहु की युति को ग्रहण योग कहते हैं. यदि बुध की युति राहु के साथ है तब यह जड़त्व योग बनता है. इन योगों के प्रभावस्वरुप भाव स्वामी की स्थिति के अनुसार ही अशुभ फल मिलते हैं. वैसे चंद्र की युति राहु के साथ कभी भी शुभ नही मानी जाती है. इस युति के प्रभाव से माता या पत्नी को कष्ट होता है, मानसिक तनाव रहता है, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बांधवों से वैर-विरोध, परिजनों का व्यवहार परायों जैसा होने के फल मिल सकते हैं.
    जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रही हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है.
    यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी रहती है.
    बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृ दोष की कुंडली बनती है और इस दोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है.
    इन योगों के अतिरिक्त कुंडली में कई योग ऎसे भी बन जाते हैं जो कई प्रकार से कष्ट पहुंचाने का काम करते हैं. जैसे पंचमेश राहु के साथ यदि त्रिक भावों (6, 8, 12) में स्थित है और पंचम भाव शनि या कोई अन्य क्रूर ग्रह भी है तब संतान सुख में कमी हो सकती है. शनि तथा राहु के साथ अन्य शुभ ग्रहों के मिलने से कई तरह के अशुभ योग बनते हैं जो पितृ दोष की ही तरह बुरे फल प्रदान करते हैं.

पितृ दोष की शांति के विशेष उपाय |
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष बन रहा है और वह महंगे उपाय करने में असमर्थ है तब वह सरल उपायों के द्वारा भी पितृ दोष के प्रभाव को कम कर सकता है. यह उपाय निम्नलिखित हैं :-

    यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब उस व्यक्ति को अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाकर उन्हें सम्मानित करना चाहिए. पूर्वजों की मृत्यु की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, अपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्र और दान-दक्षिणा आदि देनी चाहिए. नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए.

    जिन व्यक्तियों के माता-पिता जीवित हैं उनका आदर-सत्कार करना चाहिए. भाई-बहनों का भी सत्कार आपको करते रहना चाहिए. धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए.
    प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और “ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करें. उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है.
    प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें.
    प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए. पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए. त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करना, पंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठ, पूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए. इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
    पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए. कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए. इससे शुभ फल मिलते हैं.
    श्राद्ध के दिनों में माँस आदि का मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए. शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए. सभी तामसिक वस्तुओं को सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए.
    पीपल के वृक्ष पर मध्यान्ह में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएँ. संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें. ब्राह्मण को भोजन कराएँ. इससे भी पितृ दोष की शांति होती है.


    सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें. ऎसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है.

    प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है.
    कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है.
    ब्राह्मणों को गोदान, कुंए खुदवाना, पीपल तथा बरगद के पेड़ लगवाना, विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमदभागवत गीता का पाठ करना, पितरों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला, आदि बनवाने से भी लाभ मिलता है.

पितृदोष के कारण संतान कष्ट होने के उपाय |
पितृ दोष के कारण कई व्यक्तियों को संतान प्राप्ति में बाधा तथा रुकावटों का सामना करना पड़ता है. इन बाधाओं के निवारण के लिए कुछ उपाय हैं जो निम्नलिखित हैं :-
1. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा है तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से शांति प्राप्त होती है.
2. मातृ दोष |
यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है.
मातृ दोष के शांति उपाय |
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है.
मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है.
3. भ्रातृ दोष |
तृतीय भावेश मंगल यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु के साथ पंचम भाव में हो तथा पंचमेश व लग्नेश दोनों ही अष्टम भाव में है तब भ्रातृ शाप के कारण संतान प्राप्ति बाधा तथा कष्ट का सामना करना पड़ता है.
भ्रातृ दोष के शांति उपाय |
भ्रातृ दोष की शांति के लिए श्रीसत्यनारायण का व्रत रखना चाहिए और सत्यनारायण भगवान की कथा कहनी या सुननी चाहिए तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके सभी को प्रसाद बांटना चाहिए.
4. सर्प दोष |
यदि पंचम भाव में राहु है और उस पर मंगल की दृष्टि हो या मंगल की राशि में राहु हो तब सर्प दोष की बाधा के कारण संतान प्राप्ति में व्यवधान आता है या संतान हानि होती है.
सर्प दोष के शांति उपाय |
सर्प दोष की शांति के लिए नारायण नागबली विधिपूर्वक करवानी चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए, उन्हें वस्त्र, गाय दान, भूमि दान, तिल, चांदी या सोने का दान भी करना चाहिए. लेकिन एक बात ध्यान रखें कि जो भी करें वह अपनी यथाशक्ति अनुसार करें.
5. ब्राह्मण श्राप या दोष |
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि धनु या मीन में राहु स्थित है और पंचम भाव में गुरु, मंगल व शनि हैं और नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में है तब यह ब्राह्मण श्राप की कुंडली मानी जाती है और इस ब्राह्मण दोष के कारण ही संतान प्राप्ति में बाधा, सुख में कमी या संतान हानि होती है.
ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय |
ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है.
6. मातुल श्राप |
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव में मंगल, बुध, गुरु तथा राहु हो तब मामा के श्राप से संतान प्राप्ति में बाधा आती है.
मातुल श्राप के शांति उपाय |
मातुल श्राप से बचने के लिए किसी मंदिर में श्री विष्णु जी की प्रतिमा की स्थापना करानी चाहिए. लोगों की भलाई के लिए पुल, तालाब, नल या प्याउ आदि लगवाने से लाभ मिलता है और मातुल श्राप का प्रभाव कुछ कम होता है.
7. प्रेत श्राप |
किसी व्यक्ति की कुंडली में यदि पंचम भाव में शनि तथा सूर्य हों और सप्तम भाव में कमजोर चंद्रमा स्थित हो तथा लग्न में राहु, बारहवें भाव में गुरु हो तब प्रेत श्राप के कारण वंश बढ़ने में समस्या आती है.
यदि कोई व्यक्ति अपने दिवंगत पितरों और अपने माता-पिता का श्राद्ध कर्म ठीक से नहीं करता हो या अपने जीवित बुजुर्गों का सम्मान नहीं कर रह हो तब इसी प्रेत बाधा के कारण वंश वृद्धि में बाधाएँ आ सकती हैं.
प्रेत श्राप के शांति उपाय |
प्रेत शांति के लिए भगवान शिवजी का पूजन करवाने के बाद विधि-विधान से रुद्राभिषेक कराना चाहिए. ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, फल, गोदान आदि उचित दक्षिणा सहित अपनी यथाशक्ति अनुसार देनी चाहिए. इससे प्रेत बाधा से राहत मिलती है.
गयाजी, हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थ स्थानों पर स्नान तथा दानादि करने से लाभ और शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
पित्र दोष
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .

कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं,लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।

अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।

"पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।

एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।

पितृ दोष प्रश्न : पितृ-दोष क्या है एवं इसके क्या प्रभाव हैं? कुंडली में कैसे जानेंगे कि इसमें पितृ दोष है। इसको दूर करने के उपाय बताएं एवं विशेष स्थल पर दोष दूर करने का क्या महत्व है? यदि हमारे पूर्वजों ने किसी प्रकार के अशुभ कार्य किये हों एवं अनैतिक रूप से धन एकत्रित किया होता है, तो उसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ते हैं, क्योंकि आगे आने वाली पीढ़ियों के भी कुछ ऐसे अशुभ कर्म होते हैं कि वे उन्हीं पूर्वजों के यहां पैदा होते हैं। अतः पूर्वजों के कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पैतृक दोष या पितृ-दोष कहा जाता है। जातक द्वारा इस जन्म या पूर्व जन्मों में किये गये गलत, अशुभ या पाप कर्म अर्थात् अधर्म का जातक को इस जन्म या अगले जन्म या जन्मों में परिणाम भोगना पड़ता है। यह जन्मपत्री में 'पितृ दोष' के रूप में उत्पन्न होता है। अतः इसकी पहचान अति आवश्यक है; ताकि जातक द्वारा किये गये अधर्म का पता लग जाये तथा उपाय द्वारा इसे सुधारा जा सके। पितृ दोष के प्रभाव : शापित पितरों के शेष बचे कुफल (यदि अधिकांश फल एक पीढ़ी पूर्व भोगे जा चुके हैं)। संपूर्ण कुफल (जातक की कुंडली प्रथम दृष्टया कितनी भी अच्छी प्रतीत होती हो) जातक के व परिवार जनों के जीवन-काल में अधोअंकित लक्षण/ फल/प्रभाव परिलक्षित/दृष्टव्य होते हैं :- अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना। दवा-दारू पर धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, किसी को दीर्घकालिक बीमारी का सामना करना, समुचित इलाज के बावजूद रोग का पकड़ में न आना। जातक या परिवार जनों को अपंगता, मूर्छा रोग, मिर्गी रोग मानसिक बीमारी का होना (कुछ स्थानों पर कुष्ठ रोग का होना) । सूर्य और पितृ दोष कारण, प्रभाव व उपचार - सूर्य के कारण पितृ ऋण का दोष : सूर्य पापे संयुक्त : मानसागरी के अनुसार - ''सूर्य पाप ग्रह से युक्त हो या पाप कर्तरी योग में हो अर्थात् पाप ग्रह के मध्य हो अथवा सूर्य से सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो उसका पिता असामयिक मृत्यु प्राप्त करता है। यह एक पितृ दोष का कारण हैं। ''अर्थात् इस कथन का विवेचन यह स्पष्ट करता है कि सूर्य के लिये पाप ग्रह केवल शनि, राहु और केतु हैं। क्योंकि सूर्य तो स्वयं पाप व क्रूर ग्रह हैं तथा दूसरा अन्य पाप ग्रह मंगल हैं, जो सूर्य का मित्र हैं। इसलिये सूर्य एवं मंगल को पापत्व से मुक्त किया गया है। इसलिये सूर्य के साथ शनि, राहु एवं केतु हो तो पितृ दोष लगता है या पितृ ऋण चढ़ जाता है। यही पितृ दोष की पहचान भी है। सूर्यश्च पाप मध्यगत : सूर्य, यदि शनि, राहु और केतु के बीच में हो अर्थात् पूर्व ओर राहु, केतु, शनि हो। इससे पितृ दोष आ जाता है। सूर्य सप्तगम पाप : सूर्य से सप्तम स्थान पर पाप ग्रह हो अर्थात् सूर्य पाप ग्रह से दृष्ट हो तो पितृ दोष आ जाता है। क्योंकि सभी ग्रह (यानि राहु, केतु, शनि) अपने से सप्तम भाव या दृष्टि से देखते हैं। शनि की सप्तम के अलावा अन्य और दो दृष्टि -तृतीय एवं दशम होती है। अतः सूर्य से चतुर्थ, सप्तम और एकादश स्थान पर शनि के रहने से पितृ दोष लगता है जिससे जातक के ऊपर पितृ ऋण चढ़ जाता है। राहु, केतु की दृष्टि प्राचीन ग्रंथों में नहीं है। लेकिन अर्वाचीन ग्रंथों ने माना है कि राहु, केतु ग्रह पंचम एवं नवम भाव को देखते हैं, क्योंकि ये दोनों दृष्टियां होती हैं ये माना जाता है। इनका फल भी घटता जाता है। अतः सूर्य से पंचम और नवम स्थान में राहु, के रहने पर पितृ दोष लगता है। तत् पितृ बधो भवेत् : पिता का घर प्रधान मुखय होता है। उनके होने से परिवार में उन्नति होती है, सुख-शांति मिलती है क्योंकि पिता, परिवार का मुखिया/स्वामी होता है यानि परिवार की छत हैं। इसके अलावा, इनके रहने से बाहर की सुख शांति में बाधा नहीं रहती हैं। संसार में अमन चैन रहता है। पिता के नहीं रहने पर उपरोक्त सभी सुखों में कमी आयेगी। उपरोक्त सभी सुखों में कमी पितृ दोष आने पर भी आ जाती है जिससे घर में अशांति रहेगी। 'पिता' (पितृ) शब्द का विशेष 'अर्थ' : ज्योतिष में 'पिता' का कारक 'सूर्य' है। प्राचीन काल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश दृश्य थे लेकिन आधुनिक काल में मनुष्यों में दानवत्व के गुण अधिक आ जाने से ये तीनो शक्तियां अदृश्य रूप में हैं। लेकिन यही सूर्य (पिता का कारक), सृष्टि की उत्पत्ति, वृद्धि (संचालन) तथा विनाश करता है। सूर्य, भाग्य, स्वास्थ्य, हड्डी, नेत्र, धन, राज्य व सरकार व नेतृत्व का कारक भी है। अतः इसके निर्बल हो जाने या पितृ दोष के आ जाने के कारण उपरोक्त सुखों में कमी आ जाती है। कारण (सूर्य के कारण, पितृ दोष लगने का कारण) : परमात्मा के पास मनुष्य को मिलाकर प्रत्येक जीव के प्रारब्ध का लेखा-जोखा है। पूर्व जन्मों के पाप एवं पुण्य जनित फल भोगने के लिये ही मानव एवं अन्य जीव का शरीर (रूप) मिलता है। चूंकि सूर्य, आत्मा एवं पिता का कारक है अतः पूर्व जन्म में अपने पिता (अर्थात् पितृ/पूर्वज) को किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं करने के कारण यह दोष चढ़ता है। सूर्य के कारण पितृ दोष लगने के निम्न कारण हो सकते हैं। पिता की हत्या कर देना। अपने कार्य से पिता को संतुष्ट एवं खुश न रखना। पिता की अच्छी तरह से सेवा न करना। विपरीत प्रतिष्ठा के कारण पिता की प्रतिष्ठा, मान-सम्मान में कमी करना। वह पाप/अपराध, जिसका प्रायश्चित बड़ी मुश्किल से हो या न हो आदि। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिंदू संस्कृति के अनुसार उपरोक्त कार्यों से मनुष्य पर पितृ ऋण का दोष आ जाता है। चूंकि जन्मकुंडली, मनुष्य के प्रारब्ध का दर्पण है अतः यह कुंडली देखने से जब सूर्य ग्रह, पाप ग्रहों से युक्त होता है तो यह समझा जाता है कि मनुष्य पूर्व जन्म के पितृ दोष से मुक्त नहीं हो पाया है। सूर्य के कारण पितृ दोष निवारण के उपाय माणिक्य धारण करें। लग्नानुसार सूर्य यंत्र को स्थापित कर, सूर्य मंत्र - ''ऊँ घृणि सूर्याय नमः'' के साथ पंचोपचार पूजा करें। रविवार के व्रत और उद्यापन करें। सूर्य का अनौना व्रत रखें। सूर्य की वस्तुओं का दान करे। प्रतिदिन गुरुजनों की सेवा करें। सूर्य नमस्कार करें। मंगल के कारण पितृ दोष : चूंकि मंगल का संबंध रक्त संबंध से होता है तथा रक्त संबंध के अंतर्गत पूर्वज, पिता आदि सारे संबंध आ जाते हैं। यदि हमारे पूर्वजों ने कुछ गलत कर्म किये हैं तो उनका परिणाम स्वयं को इस जन्म में या अगले जन्म में अथवा पीढ़ी दर-पीढ़ी किसी न किसी को भोगना पड़ता है। जो पितृ दोष के रूप में उभर कर सामने आता है। चूंकि मंगल, हमारे शरीर में बहने वाले खून का कारक होता है अतः इस पर राहु, केतु का पाप प्रभाव होने पर पितृ दोष के रूप में उभर कर सामने आता है। तो यह मंगल शरीर में खून की कमी कर अपना प्रभाव जातक को निम्न रक्तचाप के रूप में देता है। जिससे शरीर में ऊर्जा, कामशक्ति तथा संतान पैदा करने की शक्ति की कमी करता है। चूंकि राहु एवं केतु के साथ जब मंगल ग्रह आ जाता हैं तो पितृ दोष का निर्माण होता है। अर्थात् राहु एवं केतु पितृ दोष की सूचना देते हैं। इसके साथ ही ये दोनों ही ग्रह कालसर्प योग की भी रचना करते हैं। इसके कारण जातक की वंश वृद्धि रूक जाती है। मंगल के कारण उपरोक्त अश्ुाभफल मुखय हैं। क्योंकि मंगल रक्त का कारक ग्रह है। इसके अलावा, अन्य अशुभ परिणाम भी देखने को मिलते हैं। जैसे - अकाल मृत्यु होना अर्थात् समय से पूर्व ही दुर्घटना या अन्य किसी कारण से जातक की मृत्यु होना, बलहीन हो जाना आदि है। इस स्थिति में मृत आत्मा तब तक भटकती रहती है जब तक कि उसकी वास्तविक आयु पूरी नहीं हो जाये। इसके अलावा कई आत्माएं भूत, प्रेत, नाग, डायन (भूतनी, प्रेतनी) आदि बनकर पृथ्वी पर विचरती (भटकती) रहती है। ये सभी राहु, केतु के ही रूप हैं जिन्हें ऊपरी बाधा या हवा कहते हैं। इसके अलावा और भी कई धार्मिक आत्मायें रहती हैं वे किसी को भी परेशानी नहीं देती बल्कि दूसरों का सदा भला करती हैं। लेकिन बुरी (दुष्ट) आत्मायें दूसरों को दुख, कष्ट आदि ही देती हैं। यही स्थिति हमारे पूर्वजों पर भी समान रूप से लागू होती है। हमारे पूर्वज, मृत अवस्था में जो रूप धारण करते हैं, वे पितृ दोष के कारण तड़पते रहते हैं तथा आकाश में विचरण करते रहते हैं। उन्हें खाने, पीने को कुछ भी मिलता है। उनकी आत्मायें चाहती है, उनके रक्त संबंध (रिश्तेनाते) (जैसे- पुत्र, पौत्र या पौत्री, पुत्री, पत्नी आदि। उस आत्मा का उद्धार करें। यह उद्धार इसके उपाय ''श्राद्ध'' कर्म करके किया जा सकता है। अर्थात् आकाश में विचरण कर रही उन आत्माओं को खाने-पीने का कुछ भी नहीें मिलने की स्थिति में तड़पने पर रक्त संबंध द्वारा श्राद्ध कर्म करने पर उन्हें खाने-पीने (तर्पण) को मिल जाता है तथा उनकी आत्माएं तर्पण से तृप्त हो जाती है। तथा श्राद्ध में खाने के बाद पिलाने का विशेष महत्व है। क्योंकि पिलाना (जल) 'तर्पण' को कहते हैं तथा इससे आत्माएं तृप्त हो जाती हैं, फिर भटकती नहीं है तथा इनका उद्धार हो जाता है यदि उपरोक्त रक्त संबंधी ऐसा नहीं करते हैं तो ये आत्मायें, इनके रक्त संबंधियों के जीवन में घोर संकट के रूप में सामने आती हैं, जो कि पितृ दोष का कारण बन जाती हैं। परिवार में एक या अधिक को पितृ दोष हो सकता है। जो इस आत्मा के ज्यादा निकट होता है वह उसका पात्र बनता है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि पितृदोष का कारक मंगल होता है तथा मंगल का संबंध रक्त संबंध से होता है। जो ''शिव आराधना'' से दूर होता है। अर्थात् उपाय के रूप में यह करना चाहिये। हाथ में पितृ दोष की पहचान यह है कि गुरु पर्वत और मस्तिष्क रेखा के बीच में से एक रेखा निकलकर आती हैं, जो दोनों को काटती हैं, यह हस्त रेखा शास्त्र में पितृ दोष की पहचान है तथा पितृ दोष का मुखय कारण भी है। इनके प्रभाव एवं उपाय 'मंगल उपाय' को छोड़कर समान हैं। कुछ उपाय ''मंगल के कारण पितृ दोष'' निम्न है। लग्नानुसार मूंगा धारण करें तथा राहु, केतु के वैदिक मंत्रों का क्रमशः 18000, 17000 जप करावें। मंगल यंत्र को स्थापित कर पूजा करें। मंगल मंत्र के 10000 जप करायें। मंगलवार को मंगल की वस्तुओं का दान करें। मंगलवार को व्रत करें। शिव आराधना करें। लाल मसूर की दाल और कुछ पैसे प्रातः काल सफाई करने वाले को दान करें। कुछ कोयले पानी में प्रवाहित करें। अपने शयन कक्ष में लाल रंग के तकिये कवर, चद्दर तथा पर्दे का प्रयोग करें। मसूर की दाल पानी में प्रवाहित करें। हनुमानजी, कार्तिकेय जी व नृसिंह की पूजा करे। सूअर (श्रीहरि का वाराहवतार) को प्रतिदिन या सप्ताह में दो बार-मंगल एवं शनिवार को मसूर की दाल खिलायें। मछली (मत्स्य) (श्री हरि का मत्स्यावतार) को प्रतिदिन आटे की गोलियां खिलायें। मंगल भगवान का पूजन, अर्चन शिव स्वरूप में होता हैं। पूजा में पंचामृत से स्नान करवाते हैं। पितृ दोष दूर करने के उपाय : प्रातः सूर्य नमस्कार करें एवं सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल का अर्घ्य दें। । पूर्णिमा को चांदी के लोटे से दूध का अर्घ्य चंद्र देव को दें, व्रत भी करें। बुजुर्गों या वरिष्ठों के चरण छू कर आशीर्वाद लें। 'पितृ दोष शांति' यंत्र को अपने पूजन स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर, प्रतिदिन इसके स्तोत्र एवं मंत्र का जप करें। पितृ गायत्री मंत्र द्वारा सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान अर्थात् जप, हवन, तर्पण आदि संकल्प लेकर विधि विधान सहित करायें। अमावस्या का व्रत करें तथा ब्राह्मण भोज, दान आदि कराने से पितृ शांति मिलती है। अपने घर में पितरों के लिये एक स्थान अवश्य बनायें तथा प्रत्येक शुभ कार्य के समय अपने पित्तरों को स्मरण करें। उनके स्थान पर दीपक जलाकर, भोग लगावें। ऐसा प्रत्येक त्योहार (उत्सव/पर्व) तथा पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन करें। उपरोक्त पूजा स्थल घर की दक्षिण दिशा की तरफ करें तथा वहां पूर्वजों की फोटो-तस्वीर लगायें। दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी न सोयें। अमावस्या को विभिन्न वस्तुओं जैसे - सफेद वस्त्र, मूली, रेवड़ी, दही व दक्षिणा आदि का दान करें। प्रत्येक अमावस्या को श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करायें और श्रवण करें। विष्णु मंत्रों का जाप करें तथा श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करें। विशेषकर ये श्राद्ध पक्ष में करायें। एकादशी व्रत तथा उद्यापन करें। पितरों के नाम से मंदिर, धर्मस्थल, विद्यालय, धर्मशाला, चिकित्सालय तथा निःशुल्क सेवा संस्थान आदि बनायें। श्राद्ध-पक्ष में गंगाजी के किनारे पितरों की शांति एवं हवन-यज्ञ करायें। पिंडदान करायें। 'गया' में जाकर पिंडदान करवाने से पितरों को तुरंत शांति मिलती हैं। अर्थात जो पुत्र 'गया' में जाकर पिंडदान करता हैं, उसी पुत्र से पिता अपने को पुत्रवान समझता हैं और गया में पिंड देकर पुत्र पितृण से मुक्त हो जाता है। सर्वश्राप व पितृ दोष मुक्ति के लिये नारायण बली का पाठ, यज्ञ तथा नागबली करायें। पवित्र तीर्थ स्थानों में पिंडदान करें। कनागत (श्राद्ध पक्ष) में पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन योग्य विद्वान ब्राह्मण से पितृदोष शांति करायें। इस दिन व्रत/उपवास करें तथा ब्राह्मण भोज करायें। घर में हवन, यज्ञ आदि भी करायें। इसके अलावा, पितरों के लिए जल तर्पण करें। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की पुण्यतिथि अनुसार ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, फल, वस्तु आदि दक्षिणा सहित दान करें। परिवार में होने वाले प्रत्येक शुभ एवं धार्मिक, मांगलिक आयोजनों में पूर्वजों को याद करें तथा क्षमतानुसार भोजन, वस्त्र आदि का दान करें। सरसों के तेल का दीपक जलाकर, प्रतिदिन सर्पसूक्त एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें। सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के समय/ दिन सात प्रकार के अनाज से तुला दान करें। शिवलिंग पर प्रतिदिन दूध चढ़ायें। बिल्वपत्र सहित पंचोपचार पूजा करे। ''ऊँ नमः शिवाय'' या महामृत्युंजय मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करें। भगवान शिव की अधिक से अधिक पूजा करें। वर्ष में एक बार श्रावण माह व इसके सोमवार, महाशिवरात्रि पर रूद्राभिषेक करायें। शत्रु नाश के लिये सोमवारी अमावस्या को सरसों के तेल से रूद्राभिषेक करायें। यदि यह सोमवारी अमावस्या श्रावण माह में आये तो ''सोने पर सुहागा'' होगा। नागपंचमी का व्रत करें तथा इस दिन सर्पपूजा करायें। नाग प्रतिमा की अंगूठी धारण करें। प्रत्येक माह पंचमी तिथि (शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की) को चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बांधकर शिवलिंग पर चढ़ायें। कालसर्प योग की शांति यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन सरसों के तेल के दीपक के साथ मंत्र - ''ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात् - ''की एक रुद्राक्ष माला जप प्रतिदिन करें। घर एवं कार्यालय, दुकान पर मोर पंख लगावें। घर में पूजा स्थल पर पारद शिवलिंग को चांदी या तांबे के पंचमुखी नाग पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन पूजा करें। ताजी मूली का दान करें। कोयले, बहते जल में प्रवाहित करें। महामृत्युंजय मंत्र का संकल्प लेकर सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान करायें। प्रातः पक्षियों को जौ के दाने खिलायें। जल पिलायें। इसके अलावा उड़द एवं बाजरा भी खिला सकते हैं। पानी वाला नारियल हर शनिवार प्रातः या सायं बहते जल में प्रवाहित करें। शिव उपासना एवं रुद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करें। यदि संभव हो तो राहु एवं केतु के मंत्रों का क्रमशः 72000 एवं 68000 जप संकल्प लेकर करायें। सरस्वती माता एवं गणेश भगवान की पूजा करें। प्रत्येक सोमवार को शिव जी का अभिषेक दही से मंत्र - ''ऊँ हर-हर महादेव'' जप के साथ करें। प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को शिवजी एवं गणेशजी पर दूध एवं जल चढ़ावें। रुद्र का जप एवं अभिषेक करें। भांग व बिल्वपत्र चढ़ायें। गणेशजी को लड्डू का प्रसाद, दूर्वा का लाल पुष्प चढ़ायें। सरस्वती माता को नीले पुष्प चढ़ायें। गोमेद एवं लहसुनिया लग्नानुसार, यदि सूट करे तो धारण करे। कुलदेवता/देवी की प्रतिदिन पूजा करे। नाग योनि में पड़े पितरो के उद्धार तथा अपने हित के लिये नागपंचमी के दिन चांदी के नाग की पूजा करे। हिजड़ों को साल में कम से कम एक बार नये वस्त्र, फल, मिठाई, सुगन्धित सौंदर्य प्रसाधन सामग्री एवं दक्षिणा आदि का सामर्थ्यानुसार दान करें। यदि दांपत्य जीवन में बाधा आ रही है तो अपने जीवन साथी के साथ नियमित रूप से अर्थात् लगातार 7 शुक्रवार किसी भी देवी के मंदिर में 7 परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते पर मिश्री एवं मक्खन का प्रसाद रखें। तथा साथ ही पति एवं पत्नी दोनों ही अलग-अलग सफेद फूलों की माला चढ़ायें तथा सफेद पुष्प चरणों में चढ़ायें। अष्ट मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
                          
       पित्र दोष भारतीय ज्योतिष की एक अति महत्त्वपूर्ण धारणा है तथा इस पर चर्चा किए बिना भारतीय ज्योतिष को अच्छी तरह से समझ पाना संभव नहीं है। वैसे तो भारतीय ज्योतिष में पाए जाने वाले अधिकतर योगों, दोषों एवम धारणाओं के बारे में तरह-तरह की भ्रांतियां फैली हुईं हैं किन्तु पित्र दोष इन सब से आगे है क्यों कि पित्र दोष के बारे में तो पहली भ्रांति इसके नाम और परिभाषा से ही शुरू हो जाती है। पित्र दोष के बारे में अधिकतर ज्योतिषियों और पंडितों का यह मत है कि पित्र दोष पूर्वजों का श्राप होता है जिसके कारण इससे पीड़ित व्यक्ति जीवन भर तरह-तरह की समस्याओं और परेशानियों से जूझता रहता है तथा बहुत प्रयास करने पर भी उसे जीवन में सफलता नहीं मिलती। इसके निवारण के लिए पीड़ित व्यक्ति को पूर्वजों की पूजा करवाने के लिए कहा जाता है जिससे उसके पित्र उस पर प्रसन्न हो जाएं तथा उसकी परेशानियों को कम कर दें।

                                                     यह सारी की सारी धारणा सिरे से ही गलत है क्योंकि पित्र दोष से पीड़ित व्यक्ति के पित्र उसे श्राप नहीं देते बल्कि ऐसे व्यक्ति के पित्र स्वयम ही शापित होते हैं जिसका कारण उनके द्वारा किए गए बुरे कर्म होते हैं जिनका भुगतान उनके वंश में पैदा होने वाले वंशजों को करना पड़ता है। जिस तरह संतान अपने पूर्वजों के गुण-दोष धारण करती है, अपने वंश के खून में चलने वाली अच्छाईयां और बीमारियां धारण करती है, अपने बाप-दादा से मिली संपत्ति तथा कर्ज धारण करती है, उसी तरह से उसे अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए अच्छे एवम बुरे कर्मों के फलों को भी धारण करना पड़ता है।


               कुछ ज्योतिषि तथा पंडित इस दोष का कारण बताते हैं कि आपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म ठीक से नहीं किया जिसके कारण आपके पित्र आपसे नाराज़ हैं तथा इसी कारण आपकी कुंडली में पित्र दोष बन रहा है। यह मत सर्वथा गलत है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली उसके जन्म के समय ही निर्धारित हो जाती है तथा इसके साथ ही उसकी कुंडली में बनने वाले योग-दोष भी निर्धारित हो जाते हैं। इसके बाद कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में अच्छे-बुरे जो भी काम करता है, उनके फलस्वरूप पैदा होने वाले योग-दोष उसकी इस जन्म की कुंडली में नहीं आते बल्कि उसके अगले जन्मों की कुंडलियों में आते हैं। तो चाहे कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म ठीक तरह से करे न करे, उनसे पैदा होने वाले दोष उस व्यक्ति की इस जन्म की कुंडली में नहीं आ सकते। इसलिए जो पित्र दोष किसी व्यक्ति की इस जन्म की कुंडली में उपस्थित है उसका उस व्यक्ति के इस जन्म के कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि वह पित्र दोष तो उस व्यक्ति को इस जन्म में अच्छे-बुरे कर्मों करने की स्वतंत्रता मिलने से पहले ही निर्धारित हो गया था। आईए अब पित्र दोष के मूल सिद्धांत को भारतीय मिथिहास की एक उदाहरण की सहायता से समझने का प्रयास करें।


                                               यह उदाहरण भारतवर्ष में सबसे पवित्र मानी जाने वाली तथा माता के समान पूजनीय नदी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के साथ जुड़ी है। प्राचीन भारत में रघुकुल में सगर नाम के राजा हुए हैं जिन्होने पृथ्वी पर सबसे पहला सागर खुदवाया था तथा जो भगवान राम चन्द्र जी के पूर्वज थे। इन्ही राजा सगर के पुत्रों ने एक गलतफहमी के कारण तपस्या कर रहे कपिल मुनि पर आक्रमण कर दिया तथा कपिल मुनि के नेत्रों से निकली क्रोधाग्नि ने इन सब को भस्म कर दिया। राजा सगर को जब इस बात का पता चला तो वह समझ गए कि कपिल मुनि जैसे महात्मा पर आक्रमण करने के पाप कर्म का फल उनके वंश की आने वाली कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने तुरंत अपने पौत्र अंशुमन को मुनि के पास जाकर इस पाप कर्म का प्रायश्चित पूछने के लिए कहा जिससे उनके वंश से इस पाप कर्म का बोझ दूर हो जाए तथा उनके मृतक पुत्रों को भी सदगति प्राप्त हो। अंशुमन के प्रार्थना करने पर मुनि ने बताया कि इस पाप कर्म का प्रायश्चित करने के लिए उनके वंश के लोगों को भगवान ब्रह्मा जी की तपस्या करके स्वर्ग लोक की सबसे पवित्र नदी गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगना होगा तथा गंगा के पृथ्वी लोक आने पर मृतक राजपुत्रों की अस्थियों को गंगा की पवित्र धारा में प्रवाह करना होगा। तभी जाकर उनके वंश से इस पाप कर्म का बोझ उतरेगा। 


     मुनि के परामर्श अनुसार अंशुमन ने ब्रह्मा जी की तपस्या करनी आरंभ कर दी किन्तु उनकी जीवन भर की तपस्या से भी ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तो उन्होने मरने से पहले यह दायित्व अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया। राजा दिलीप भी जीवन भर ब्रह्मा जी की तपस्या करते रहे पर उन्हे भी ब्रह्मा जी के दर्शन प्राप्त नहीं हुए तो उन्होने यह दायित्व अपने पुत्र भागीरथ को सौंप दिया। राजा भागीरथ के तपस्या करने पर ब्रह्मा जी प्रस्न्न होकर प्रकट हुए तथा उन्होने भागीरथ को गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान दिया। वरदान देकर जब भगवान ब्रह्मा जी जाने लगे तो राजा भागीरथ ने उनसे एक सवाल पूछा जो कुछ इस तरह से था, “ हे भगवान ब्रह्मा जी, मेरे दादा महाराज अंशुमन तथा मेरे पिता महाराज दिलीप ने जीवन भर आपको प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया परंतु आपने उनमें से किसी को भी दर्शन नहीं दिए जबकि मेरी तपस्या तो उनसे कम थी परतु फिर भी आपने मुझे दर्शन और वरदान दिए। हे प्रभु क्या मेरे पूर्वजों की तपस्या में कोई कमी थी जो उनकी तपस्या व्यर्थ गई”। इसके उत्तर में भगवान ब्रह्मा जी ने कहा, “ राजन, तपस्या कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। आपके पूर्वजों की तपस्या तो कपिल मुनि पर आक्रमण करने के पाप कर्म का भुगतान करने में चली गई और आपकी तपस्या के फलस्वरूप गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए आवश्यक पुण्य कर्म संचित हुए हैं। यदि आपके पूर्वजों ने तपस्या करके आपके कुल पर चढ़े हुए पाप कर्मों का भुगतान न किया होता तो आज आपको मेरे दर्शन और वरदान प्राप्त नहीं होते”।


इस उदाहरण से सपष्ट हो जाता है कि राजा सगर के पुत्रों के पाप कर्म से उनके वंश पर जो पित्र ॠण चढ़ गया था, उसका भुगतान उनके वंश मे आने वाली पीढ़ियों को करना पड़ा। इस तरह पित्र दोष पूर्वजों के श्राप देने से नहीं बल्कि पूर्वजों के स्वयम शापित होने से बनता है और इसके निवारण के लिए आपको पूर्वजों की पूजा नहीं करनी है बल्कि पूर्वजों के उद्धार के लिए पूजा तथा अन्य अच्छे कर्म करने हैं।    

         पित्र दोष के बारे में इतनी चर्चा करने के बाद आइए अब विचार करें कि जन्म कुंडली में उपस्थित किन लक्षणों से कुंडली में पित्र दोष के होने का पता चलता है। नव-ग्रहों में सूर्य सपष्ट रूप से पूर्वजों के प्रतीक माने जाते हैं, इस लिए किसी कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों के साथ स्थित होने से या बुरे ग्रहों की दृष्टि से अगर दोष लगता है तो यह दोष पित्र दोष कहलाता है। इसके अलावा कुंडली का नवम भाव पूर्वजों से संबंधित होता है, इस लिए यदि कुंडली के नवम भाव या इस भाव के स्वामी को कुंडली के बुरे ग्रहों से दोष लगता है तो यह दोष भी पित्र दोष कहलाता है। पित्र दोष प्रत्येक कुंडली में अलग-अलग तरह के नुकसान कर सकता है जिनका पता कुंडली का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने के पश्चात ही चल सकता है। पित्र दोष के निवारण के लिए सबसे पहले कुंडली में उस ग्रह या उन ग्रहों की पहचान की जाती है जो कुंडली में पित्र दोष बना रहे हैं और उसके पश्चात उन ग्रहों के लिए उपाय किए जाते हैं जिससे पित्र दोष के बुरे असरों को कम किया जा सके।


कुंडली में एक अहम दोष पितृ दोष (Pitra Dosha in Kundali) को भी माना जाता है। कई लोग इसे पित्ररों यानि पूर्वजों के बुरे कर्मों का फल मानते हैं तो कुछ का मानना है कि अगर पित्ररों का दाह-संस्कार सही ढंग से ना हो तो वह नाखुश होकर हमें परेशान करते हैं। कुंडली में पितृ दोष तब होता है जब सूर्य, चन्द्र, राहु या शनि में दो कोई दो एक ही घर में मौजुद हो। पितृ दोष निवारण (Pitra Dosha Remedies in Hindi): पितृ दोष से युक्त जोड़े को संतान प्राप्ति में बेहद कठिनाई होती है। गर्भ ठहरने के बाद लगातार गर्भपात की समस्या आने पर इस दोष पर विचार कर लेना चाहिए। इस दोष से मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में पित्ररों का दान और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके साथ ही श्रीकृष्ण-मुखामृत गीता का पाठ करना चाहिए। पीपल के पेड पर जल, पुष्प, दूध, गंगाजल, काला तिल चढ़ाकर अपने स्वर्गीय परिजनों को याद कर उनसे माफी और आशीष मांगना चाहिए। रविवार के दिन गाय को गुड़ या गेंहू खिलाना चाहिए।पितृ दोष प्रश्न : पितृ-दोष क्या है एवं इसके क्या प्रभाव हैं? कुंडली में कैसे जानेंगे कि इसमें पितृ दोष है। इसको दूर करने के उपाय बताएं एवं विशेष स्थल पर दोष दूर करने का क्या महत्व है? यदि हमारे पूर्वजों ने किसी प्रकार के अशुभ कार्य किये हों एवं अनैतिक रूप से धन एकत्रित किया होता है, तो उसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ते हैं, क्योंकि आगे आने वाली पीढ़ियों के भी कुछ ऐसे अशुभ कर्म होते हैं कि वे उन्हीं पूर्वजों के यहां पैदा होते हैं। अतः पूर्वजों के कर्मों के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पैतृक दोष या पितृ-दोष कहा जाता है। जातक द्वारा इस जन्म या पूर्व जन्मों में किये गये गलत, अशुभ या पाप कर्म अर्थात् अधर्म का जातक को इस जन्म या अगले जन्म या जन्मों में परिणाम भोगना पड़ता है। यह जन्मपत्री में 'पितृ दोष' के रूप में उत्पन्न होता है। अतः इसकी पहचान अति आवश्यक है; ताकि जातक द्वारा किये गये अधर्म का पता लग जाये तथा उपाय द्वारा इसे सुधारा जा सके। पितृ दोष के प्रभाव : शापित पितरों के शेष बचे कुफल (यदि अधिकांश फल एक पीढ़ी पूर्व भोगे जा चुके हैं)। संपूर्ण कुफल (जातक की कुंडली प्रथम दृष्टया कितनी भी अच्छी प्रतीत होती हो) जातक के व परिवार जनों के जीवन-काल में अधोअंकित लक्षण/ फल/प्रभाव परिलक्षित/दृष्टव्य होते हैं :- अकल्पित, असामयिक घटना दुर्घटना का होना, जन-धन की हानि होना। परिवार में अकारण लड़ाई-झगड़ा बना रहना। पति/तथा पत्नी वंश वृद्धि हेतु सक्षम न हों। आमदनी के स्रोत ठीक-ठाक होने तथा शिक्षित एवम् सुंदर होने के बावजूद विवाह का न हो पाना। बारंबार गर्भ की हानि (गर्भपात) होना। बच्चों की बीमारी लगातार बना रहना, नियत समय के पूर्व बच्चों का होना, बच्चों का जन्म होने के तीन वर्ष की अवधि के अंदर ही काल के गाल में समा जाना। दवा-दारू पर धन का अपव्यय होना। जातक व अन्य परिवार जनों को अकारण क्रोध का बढ़ जाना, चिड़चिड़ापन होना। परीक्षा में पूरी तैयारी करने के बावजूद भी असफल रहना, या परीक्षा-हाल में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भूल जाना, दिमाग शून्यवत हो जाना, शिक्षा पूर्ण न कर पाना। घर में वास्तु दोष सही कराने, गंडा-ताबीज बांधने, झाड़-फूंक कराने का भी कोई असर न होना। ऐसा प्रतीत होना कि सफलता व उन्नति के मार्ग अवरूद्ध हो गए हैं। जातक व उसके परिवार जनों का कुछ न कुछ अंतराल पर रोग ग्रस्त रहना, किसी को दीर्घकालिक बीमारी का सामना करना, समुचित इलाज के बावजूद रोग का पकड़ में न आना। जातक या परिवार जनों को अपंगता, मूर्छा रोग, मिर्गी रोग मानसिक बीमारी का होना (कुछ स्थानों पर कुष्ठ रोग का होना) । सूर्य और पितृ दोष कारण, प्रभाव व उपचार - सूर्य के कारण पितृ ऋण का दोष : सूर्य पापे संयुक्त : मानसागरी के अनुसार - ''सूर्य पाप ग्रह से युक्त हो या पाप कर्तरी योग में हो अर्थात् पाप ग्रह के मध्य हो अथवा सूर्य से सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो उसका पिता असामयिक मृत्यु प्राप्त करता है। यह एक पितृ दोष का कारण हैं। ''अर्थात् इस कथन का विवेचन यह स्पष्ट करता है कि सूर्य के लिये पाप ग्रह केवल शनि, राहु और केतु हैं। क्योंकि सूर्य तो स्वयं पाप व क्रूर ग्रह हैं तथा दूसरा अन्य पाप ग्रह मंगल हैं, जो सूर्य का मित्र हैं। इसलिये सूर्य एवं मंगल को पापत्व से मुक्त किया गया है। इसलिये सूर्य के साथ शनि, राहु एवं केतु हो तो पितृ दोष लगता है या पितृ ऋण चढ़ जाता है। यही पितृ दोष की पहचान भी है। सूर्यश्च पाप मध्यगत : सूर्य, यदि शनि, राहु और केतु के बीच में हो अर्थात् पूर्व ओर राहु, केतु, शनि हो। इससे पितृ दोष आ जाता है। सूर्य सप्तगम पाप : सूर्य से सप्तम स्थान पर पाप ग्रह हो अर्थात् सूर्य पाप ग्रह से दृष्ट हो तो पितृ दोष आ जाता है। क्योंकि सभी ग्रह (यानि राहु, केतु, शनि) अपने से सप्तम भाव या दृष्टि से देखते हैं। शनि की सप्तम के अलावा अन्य और दो दृष्टि -तृतीय एवं दशम होती है। अतः सूर्य से चतुर्थ, सप्तम और एकादश स्थान पर शनि के रहने से पितृ दोष लगता है जिससे जातक के ऊपर पितृ ऋण चढ़ जाता है। राहु, केतु की दृष्टि प्राचीन ग्रंथों में नहीं है। लेकिन अर्वाचीन ग्रंथों ने माना है कि राहु, केतु ग्रह पंचम एवं नवम भाव को देखते हैं, क्योंकि ये दोनों दृष्टियां होती हैं ये माना जाता है। इनका फल भी घटता जाता है। अतः सूर्य से पंचम और नवम स्थान में राहु, के रहने पर पितृ दोष लगता है। तत् पितृ बधो भवेत् : पिता का घर प्रधान मुखय होता है। उनके होने से परिवार में उन्नति होती है, सुख-शांति मिलती है क्योंकि पिता, परिवार का मुखिया/स्वामी होता है यानि परिवार की छत हैं। इसके अलावा, इनके रहने से बाहर की सुख शांति में बाधा नहीं रहती हैं। संसार में अमन चैन रहता है। पिता के नहीं रहने पर उपरोक्त सभी सुखों में कमी आयेगी। उपरोक्त सभी सुखों में कमी पितृ दोष आने पर भी आ जाती है जिससे घर में अशांति रहेगी। 'पिता' (पितृ) शब्द का विशेष 'अर्थ' : ज्योतिष में 'पिता' का कारक 'सूर्य' है। प्राचीन काल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश दृश्य थे लेकिन आधुनिक काल में मनुष्यों में दानवत्व के गुण अधिक आ जाने से ये तीनो शक्तियां अदृश्य रूप में हैं। लेकिन यही सूर्य (पिता का कारक), सृष्टि की उत्पत्ति, वृद्धि (संचालन) तथा विनाश करता है। सूर्य, भाग्य, स्वास्थ्य, हड्डी, नेत्र, धन, राज्य व सरकार व नेतृत्व का कारक भी है। अतः इसके निर्बल हो जाने या पितृ दोष के आ जाने के कारण उपरोक्त सुखों में कमी आ जाती है। कारण (सूर्य के कारण, पितृ दोष लगने का कारण) : परमात्मा के पास मनुष्य को मिलाकर प्रत्येक जीव के प्रारब्ध का लेखा-जोखा है। पूर्व जन्मों के पाप एवं पुण्य जनित फल भोगने के लिये ही मानव एवं अन्य जीव का शरीर (रूप) मिलता है। चूंकि सूर्य, आत्मा एवं पिता का कारक है अतः पूर्व जन्म में अपने पिता (अर्थात् पितृ/पूर्वज) को किसी भी तरह से संतुष्ट नहीं करने के कारण यह दोष चढ़ता है। सूर्य के कारण पितृ दोष लगने के निम्न कारण हो सकते हैं। पिता की हत्या कर देना। अपने कार्य से पिता को संतुष्ट एवं खुश न रखना। पिता की अच्छी तरह से सेवा न करना। विपरीत प्रतिष्ठा के कारण पिता की प्रतिष्ठा, मान-सम्मान में कमी करना। वह पाप/अपराध, जिसका प्रायश्चित बड़ी मुश्किल से हो या न हो आदि। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिंदू संस्कृति के अनुसार उपरोक्त कार्यों से मनुष्य पर पितृ ऋण का दोष आ जाता है। चूंकि जन्मकुंडली, मनुष्य के प्रारब्ध का दर्पण है अतः यह कुंडली देखने से जब सूर्य ग्रह, पाप ग्रहों से युक्त होता है तो यह समझा जाता है कि मनुष्य पूर्व जन्म के पितृ दोष से मुक्त नहीं हो पाया है। सूर्य के कारण पितृ दोष निवारण के उपाय माणिक्य धारण करें। लग्नानुसार सूर्य यंत्र को स्थापित कर, सूर्य मंत्र - ''ऊँ घृणि सूर्याय नमः'' के साथ पंचोपचार पूजा करें। रविवार के व्रत और उद्यापन करें। सूर्य का अनौना व्रत रखें। सूर्य की वस्तुओं का दान करे। प्रतिदिन गुरुजनों की सेवा करें। सूर्य नमस्कार करें। मंगल के कारण पितृ दोष : चूंकि मंगल का संबंध रक्त संबंध से होता है तथा रक्त संबंध के अंतर्गत पूर्वज, पिता आदि सारे संबंध आ जाते हैं। यदि हमारे पूर्वजों ने कुछ गलत कर्म किये हैं तो उनका परिणाम स्वयं को इस जन्म में या अगले जन्म में अथवा पीढ़ी दर-पीढ़ी किसी न किसी को भोगना पड़ता है। जो पितृ दोष के रूप में उभर कर सामने आता है। चूंकि मंगल, हमारे शरीर में बहने वाले खून का कारक होता है अतः इस पर राहु, केतु का पाप प्रभाव होने पर पितृ दोष के रूप में उभर कर सामने आता है। तो यह मंगल शरीर में खून की कमी कर अपना प्रभाव जातक को निम्न रक्तचाप के रूप में देता है। जिससे शरीर में ऊर्जा, कामशक्ति तथा संतान पैदा करने की शक्ति की कमी करता है। चूंकि राहु एवं केतु के साथ जब मंगल ग्रह आ जाता हैं तो पितृ दोष का निर्माण होता है। अर्थात् राहु एवं केतु पितृ दोष की सूचना देते हैं। इसके साथ ही ये दोनों ही ग्रह कालसर्प योग की भी रचना करते हैं। इसके कारण जातक की वंश वृद्धि रूक जाती है। मंगल के कारण उपरोक्त अश्ुाभफल मुखय हैं। क्योंकि मंगल रक्त का कारक ग्रह है। इसके अलावा, अन्य अशुभ परिणाम भी देखने को मिलते हैं। जैसे - अकाल मृत्यु होना अर्थात् समय से पूर्व ही दुर्घटना या अन्य किसी कारण से जातक की मृत्यु होना, बलहीन हो जाना आदि है। इस स्थिति में मृत आत्मा तब तक भटकती रहती है जब तक कि उसकी वास्तविक आयु पूरी नहीं हो जाये। इसके अलावा कई आत्माएं भूत, प्रेत, नाग, डायन (भूतनी, प्रेतनी) आदि बनकर पृथ्वी पर विचरती (भटकती) रहती है। ये सभी राहु, केतु के ही रूप हैं जिन्हें ऊपरी बाधा या हवा कहते हैं। इसके अलावा और भी कई धार्मिक आत्मायें रहती हैं वे किसी को भी परेशानी नहीं देती बल्कि दूसरों का सदा भला करती हैं। लेकिन बुरी (दुष्ट) आत्मायें दूसरों को दुख, कष्ट आदि ही देती हैं। यही स्थिति हमारे पूर्वजों पर भी समान रूप से लागू होती है। हमारे पूर्वज, मृत अवस्था में जो रूप धारण करते हैं, वे पितृ दोष के कारण तड़पते रहते हैं तथा आकाश में विचरण करते रहते हैं। उन्हें खाने, पीने को कुछ भी मिलता है। उनकी आत्मायें चाहती है, उनके रक्त संबंध (रिश्तेनाते) (जैसे- पुत्र, पौत्र या पौत्री, पुत्री, पत्नी आदि। उस आत्मा का उद्धार करें। यह उद्धार इसके उपाय ''श्राद्ध'' कर्म करके किया जा सकता है। अर्थात् आकाश में विचरण कर रही उन आत्माओं को खाने-पीने का कुछ भी नहीें मिलने की स्थिति में तड़पने पर रक्त संबंध द्वारा श्राद्ध कर्म करने पर उन्हें खाने-पीने (तर्पण) को मिल जाता है तथा उनकी आत्माएं तर्पण से तृप्त हो जाती है। तथा श्राद्ध में खाने के बाद पिलाने का विशेष महत्व है। क्योंकि पिलाना (जल) 'तर्पण' को कहते हैं तथा इससे आत्माएं तृप्त हो जाती हैं, फिर भटकती नहीं है तथा इनका उद्धार हो जाता है यदि उपरोक्त रक्त संबंधी ऐसा नहीं करते हैं तो ये आत्मायें, इनके रक्त संबंधियों के जीवन में घोर संकट के रूप में सामने आती हैं, जो कि पितृ दोष का कारण बन जाती हैं। परिवार में एक या अधिक को पितृ दोष हो सकता है। जो इस आत्मा के ज्यादा निकट होता है वह उसका पात्र बनता है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि पितृदोष का कारक मंगल होता है तथा मंगल का संबंध रक्त संबंध से होता है। जो ''शिव आराधना'' से दूर होता है। अर्थात् उपाय के रूप में यह करना चाहिये। हाथ में पितृ दोष की पहचान यह है कि गुरु पर्वत और मस्तिष्क रेखा के बीच में से एक रेखा निकलकर आती हैं, जो दोनों को काटती हैं, यह हस्त रेखा शास्त्र में पितृ दोष की पहचान है तथा पितृ दोष का मुखय कारण भी है। इनके प्रभाव एवं उपाय 'मंगल उपाय' को छोड़कर समान हैं। कुछ उपाय ''मंगल के कारण पितृ दोष'' निम्न है। लग्नानुसार मूंगा धारण करें तथा राहु, केतु के वैदिक मंत्रों का क्रमशः 18000, 17000 जप करावें। मंगल यंत्र को स्थापित कर पूजा करें। मंगल मंत्र के 10000 जप करायें। मंगलवार को मंगल की वस्तुओं का दान करें। मंगलवार को व्रत करें। शिव आराधना करें। लाल मसूर की दाल और कुछ पैसे प्रातः काल सफाई करने वाले को दान करें। कुछ कोयले पानी में प्रवाहित करें। अपने शयन कक्ष में लाल रंग के तकिये कवर, चद्दर तथा पर्दे का प्रयोग करें। मसूर की दाल पानी में प्रवाहित करें। हनुमानजी, कार्तिकेय जी व नृसिंह की पूजा करे। सूअर (श्रीहरि का वाराहवतार) को प्रतिदिन या सप्ताह में दो बार-मंगल एवं शनिवार को मसूर की दाल खिलायें। मछली (मत्स्य) (श्री हरि का मत्स्यावतार) को प्रतिदिन आटे की गोलियां खिलायें। मंगल भगवान का पूजन, अर्चन शिव स्वरूप में होता हैं। पूजा में पंचामृत से स्नान करवाते हैं। पितृ दोष दूर करने के उपाय : प्रातः सूर्य नमस्कार करें एवं सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल का अर्घ्य दें। । पूर्णिमा को चांदी के लोटे से दूध का अर्घ्य चंद्र देव को दें, व्रत भी करें। बुजुर्गों या वरिष्ठों के चरण छू कर आशीर्वाद लें। 'पितृ दोष शांति' यंत्र को अपने पूजन स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर, प्रतिदिन इसके स्तोत्र एवं मंत्र का जप करें। पितृ गायत्री मंत्र द्वारा सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान अर्थात् जप, हवन, तर्पण आदि संकल्प लेकर विधि विधान सहित करायें। अमावस्या का व्रत करें तथा ब्राह्मण भोज, दान आदि कराने से पितृ शांति मिलती है। अपने घर में पितरों के लिये एक स्थान अवश्य बनायें तथा प्रत्येक शुभ कार्य के समय अपने पित्तरों को स्मरण करें। उनके स्थान पर दीपक जलाकर, भोग लगावें। ऐसा प्रत्येक त्योहार (उत्सव/पर्व) तथा पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन करें। उपरोक्त पूजा स्थल घर की दक्षिण दिशा की तरफ करें तथा वहां पूर्वजों की फोटो-तस्वीर लगायें। दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी न सोयें। अमावस्या को विभिन्न वस्तुओं जैसे - सफेद वस्त्र, मूली, रेवड़ी, दही व दक्षिणा आदि का दान करें। प्रत्येक अमावस्या को श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करायें और श्रवण करें। विष्णु मंत्रों का जाप करें तथा श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करें। विशेषकर ये श्राद्ध पक्ष में करायें। एकादशी व्रत तथा उद्यापन करें। पितरों के नाम से मंदिर, धर्मस्थल, विद्यालय, धर्मशाला, चिकित्सालय तथा निःशुल्क सेवा संस्थान आदि बनायें। श्राद्ध-पक्ष में गंगाजी के किनारे पितरों की शांति एवं हवन-यज्ञ करायें। पिंडदान करायें। 'गया' में जाकर पिंडदान करवाने से पितरों को तुरंत शांति मिलती हैं। अर्थात जो पुत्र 'गया' में जाकर पिंडदान करता हैं, उसी पुत्र से पिता अपने को पुत्रवान समझता हैं और गया में पिंड देकर पुत्र पितृण से मुक्त हो जाता है। सर्वश्राप व पितृ दोष मुक्ति के लिये नारायण बली का पाठ, यज्ञ तथा नागबली करायें। पवित्र तीर्थ स्थानों में पिंडदान करें। कनागत (श्राद्ध पक्ष) में पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन योग्य विद्वान ब्राह्मण से पितृदोष शांति करायें। इस दिन व्रत/उपवास करें तथा ब्राह्मण भोज करायें। घर में हवन, यज्ञ आदि भी करायें। इसके अलावा, पितरों के लिए जल तर्पण करें। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की पुण्यतिथि अनुसार ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, फल, वस्तु आदि दक्षिणा सहित दान करें। परिवार में होने वाले प्रत्येक शुभ एवं धार्मिक, मांगलिक आयोजनों में पूर्वजों को याद करें तथा क्षमतानुसार भोजन, वस्त्र आदि का दान करें। सरसों के तेल का दीपक जलाकर, प्रतिदिन सर्पसूक्त एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें। सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के समय/ दिन सात प्रकार के अनाज से तुला दान करें। शिवलिंग पर प्रतिदिन दूध चढ़ायें। बिल्वपत्र सहित पंचोपचार पूजा करे। ''ऊँ नमः शिवाय'' या महामृत्युंजय मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करें। भगवान शिव की अधिक से अधिक पूजा करें। वर्ष में एक बार श्रावण माह व इसके सोमवार, महाशिवरात्रि पर रूद्राभिषेक करायें। शत्रु नाश के लिये सोमवारी अमावस्या को सरसों के तेल से रूद्राभिषेक करायें। यदि यह सोमवारी अमावस्या श्रावण माह में आये तो ''सोने पर सुहागा'' होगा। नागपंचमी का व्रत करें तथा इस दिन सर्पपूजा करायें। नाग प्रतिमा की अंगूठी धारण करें। प्रत्येक माह पंचमी तिथि (शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की) को चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बांधकर शिवलिंग पर चढ़ायें। कालसर्प योग की शांति यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन सरसों के तेल के दीपक के साथ मंत्र - ''ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात् - ''की एक रुद्राक्ष माला जप प्रतिदिन करें। घर एवं कार्यालय, दुकान पर मोर पंख लगावें। घर में पूजा स्थल पर पारद शिवलिंग को चांदी या तांबे के पंचमुखी नाग पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन पूजा करें। ताजी मूली का दान करें। कोयले, बहते जल में प्रवाहित करें। महामृत्युंजय मंत्र का संकल्प लेकर सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान करायें। प्रातः पक्षियों को जौ के दाने खिलायें। जल पिलायें। इसके अलावा उड़द एवं बाजरा भी खिला सकते हैं। पानी वाला नारियल हर शनिवार प्रातः या सायं बहते जल में प्रवाहित करें। शिव उपासना एवं रुद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करें। यदि संभव हो तो राहु एवं केतु के मंत्रों का क्रमशः 72000 एवं 68000 जप संकल्प लेकर करायें। सरस्वती माता एवं गणेश भगवान की पूजा करें। प्रत्येक सोमवार को शिव जी का अभिषेक दही से मंत्र - ''ऊँ हर-हर महादेव'' जप के साथ करें। प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को शिवजी एवं गणेशजी पर दूध एवं जल चढ़ावें। रुद्र का जप एवं अभिषेक करें। भांग व बिल्वपत्र चढ़ायें। गणेशजी को लड्डू का प्रसाद, दूर्वा का लाल पुष्प चढ़ायें। सरस्वती माता को नीले पुष्प चढ़ायें। गोमेद एवं लहसुनिया लग्नानुसार, यदि सूट करे तो धारण करे। कुलदेवता/देवी की प्रतिदिन पूजा करे। नाग योनि में पड़े पितरो के उद्धार तथा अपने हित के लिये नागपंचमी के दिन चांदी के नाग की पूजा करे। हिजड़ों को साल में कम से कम एक बार नये वस्त्र, फल, मिठाई, सुगन्धित सौंदर्य प्रसाधन सामग्री एवं दक्षिणा आदि का सामर्थ्यानुसार दान करें। यदि दांपत्य जीवन में बाधा आ रही है तो अपने जीवन साथी के साथ नियमित रूप से अर्थात् लगातार 7 शुक्रवार किसी भी देवी के मंदिर में 7 परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते पर मिश्री एवं मक्खन का प्रसाद रखें। तथा साथ ही पति एवं पत्नी दोनों ही अलग-अलग सफेद फूलों की माला चढ़ायें तथा सफेद पुष्प चरणों में चढ़ायें। अष्ट मुखी रुद्राक्ष धारण करें। 

पूर्वजों का आभार व्यक्त करने का महापर्व:पितृपक्ष
पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पावन अवसर है। श्रद्धा से किए गए भारतीय मनीषा के अनुसार इस धरती पर जीवन लेने के पश्चात् प्रत्येक मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं— (1) देव ऋण (2) ऋषि ऋण (3) पितृ ऋण। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों के स्मरण और उनके प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन हमें उपरोक्त तीनों ऋणों से मुक्त कर देता है। यह कृतज्ञता कई कारणों से महत्वपूर्ण होती है हमें जन्म देने, तमाम संकटों से हमारी रक्षा करने, स्वयं रातों को जाग-जागकर हमें चैन की नींद सुलाने, अपनी विपन्नता की छाया मात्र भी हमपर न पड़ने देने, हमें उत्तम संस्कारों से युक्त करने— हरपल ऐसे ही न जाने कितनी अकारण करुणावृष्टि करने वाले स्नेह और ममत्व से पगे पितृदेव हमारे प्रेम, स्नेह, सत्कारसमर्पण, आदर और सम्मान से ही प्रसन्न हो उठते हैं।
पूजा-पाठ, तर्पण, पिंडदान आदि से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और इससे परिवार में सुख-शांति, यश-वैभव और सुसंतति की वृद्धि होती है। महाभारत के प्रसंग के अनुसार---- मृत्यु के उपरांत कर्ण को चित्रगुप्त नेमोक्ष देने से इन्कार कर दिया। कर्ण ने कहा, मैंने तो अपनी अर्जित सारी संपदा सदैव दान-पुण्य में ही अर्पित की है, फिर मेरे ऊपर यह कैसा ऋण बचा हुआ है?” चित्रगुप्त ने जवाब दिया, राजन्, आपने देव ऋण और ऋषि ऋण तो चुका दिया है, लेकिन आपके ऊपर अभी पितृ ऋण बाकी है। जब तक आप इस ऋण से मुक्त नहीं होंगे, तब तक आपको मोक्ष मिलना कठिन होगा। इसके उपरांत धर्मराज ने कर्ण को व्यवस्था दी, “आप 16 दिन के लिए पुनः पृथ्वी पर जाइए और अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का सविधि श्राद्ध, तर्पण तथा पिंडदान करके आइए। तभी आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी
मत्स्यपुराण के अनुसार त्रिविधं श्राद्धमुच्यते अर्थात् तीन प्रकार के श्राद्ध कहे गए हैं— (1) नित्य श्राद्ध(2) नैमित्तिक श्राद्ध एवं (3) काम्य श्राद्ध। किन्तु यमस्मृति में नित्य, नैमित्तिक और काम्य के अतिरिक्तवृद्धि तथा पार्वण सहित कुल पाँच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है—
नित्य श्राद्ध:- प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेवा को स्थापित नहीं किया जाता। केवल जलांजलि से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है।
नैमित्तिक श्राद्ध:- किसी को निमित्त बनाकर किया जाने वाला श्राद्ध नैमित्तिक श्राद्ध कहलाता है। इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक को उद्देश्य कर किया जाने वाला श्राद्ध-- जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशगात्रएकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आते हैं। इसमें भी विश्वेदेवों को स्थापित नहीं किया जाता।
काम्य श्राद्धकिसी विशेष कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है, वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।
वृद्धि श्राद्ध:- किसी प्रकार की वृद्धि जैसे पुत्र-जन्म, वास्तु-प्रवेश, विवाहादि मांगलिक अवसरों पर पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्धकर्म किये जाते हैं उन्हें वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। यह नान्दी श्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पार्वण श्राद्ध:- पार्वण श्राद्ध पर्वों से सम्बन्धित होते हैं। पर्वों जैसे अमावस्याओं, मन्वादि तिथियोंसंक्रान्तियों और पितृपक्ष आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेव सहित होता है।
विश्वामित्रस्मृति तथा भविष्यपुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता हैं जिन्हें नित्यनैमित्तिक, काम्यवृद्धिपार्वणसपिण्डन, गोष्ठीशुद्धयर्थ, कर्मांग, दैविकयात्रार्थ तथा पुष्ट्यर्थ के नामों से जाना जाता है।
सपिण्डन श्राद्ध:- सपिण्डन शब्द का अभिप्राय है पिण्डों को मिलाना। इसमें प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों मेंसम्मिलन कराया जाता है।
गोष्ठी श्राद्ध:- गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं, उन्हें गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
शुद्ध्यर्थ श्राद्ध:- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं,उन्हें शुद्धयर्थ श्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन, सगोत्र बान्धवों के साथ भोजन आदि।
कर्मांग श्राद्ध:- कर्मांग का शाब्दिक अर्थ कर्म का अंग होता हैअर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं, उन्हें कर्मांग श्राद्ध कहते हैं।
यात्रार्थ श्राद्ध:- यात्रा में निर्विघ्नता और कुशलता के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। जैसे तीर्थाटन या देशाटन के उद्देश्य से प्रस्थान के पहले किया जाने वाला  श्राद्ध।
पुष्ट्यर्थ श्राद्ध:- पुष्टि अर्थात् शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं, वेपुष्ट्यर्थ श्राद्ध कहलाते हैं।
धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के ९६ अवसर बतलाए गए हैं। एक वर्ष की 12 अमावास्याएँ, पूण्यादि तिथियाँ, 14 मन्वादि तिथियाँ, 12 संक्रान्तियाँ, 12 वैधृति योग, 12 व्यतिपात योग 15 पितृपक्ष का काल, 5 अष्टकाश्राद्ध, 5 अन्वष्टका तथा 5 पूर्वेद्यु। इन अवसरों पर शास्त्र निर्देशित विभिन्न पितृ-कर्म या श्राद्ध का विधान है, जिन्हें अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु अवश्य करना चाहिए। पितरों के निमित्तउनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। सपिण्डन के बाद वह पितरों में सम्मिलित हो जाता है। पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है, उससे वह पितृ-प्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या परिवार का कोई सदस्य उसके नाम से जो यव तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से रेतस्‌ का अंश लेकर वह चंद्रलोक में अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र ऊपर की ओर उठने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से उसी रश्मि के साथ रवाना हो जाता है।
वैदिक मान्यताओं के अनुसार माता-पिता आदि पितरों के निमित्त उनके नाम और गोत्र के उच्चारण के साथ  मंत्रों द्वारा जो अन्न आदि अर्पित किया जाता हैवह उनको उनके कर्मों के अनुसार प्राप्त हो जाताहै। यदि अपने कर्मों के अनुसार उनको देव योनि प्राप्त होती है तो वह अमृत रूप में उनको प्राप्त होता है। उन्हें गन्धर्व लोक प्राप्त होने पर भोग्य रूप में, पशु योनि में तृण रूप में, सर्प योनि में वायु रूप में, यक्ष योनि में पेय रूप में, दानव योनि में मांस के रूप में, प्रेत योनि में रुधिर के रूप में और मनुष्य योनि में अन्न आदि के रूप में उपलब्ध होता है। श्राद्धकाल उपस्थित होने पर पितृगण मनोमय रूप से श्राद्धस्थल पर उपस्थित रहते हैं और ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में अपना भाग ग्रहण करते हैं।
अतः आरोग्य, धन-सम्पदा, सन्तति, आयुष्य आदि की कामना-पूर्ति के लिए पितरों को तिल मिश्रित जलाञ्जलि अवश्य प्रदान करें।पितृपक्ष में तिलमिश्रित जल की तीन-तीन अञ्जलियाँ एक-एक पितर को प्रदान करने से उस समय तक के सारे पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं।
(एकैकस्य तिलैरमिश्रांस्त्रीन् दद्याज्जलाञ्जलीन्।
यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।)
पितृपक्ष में भाद्रपद पूर्णिमा से प्रारम्भ कर पिता की तिथि तक तर्पण करें। सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।  घर आंगन में रंगोली बनाएं ।
तर्पण के लिए अर्घ्य-पात्र चाँदी, ताम्बे अथवा कांस्य का होना चाहिए। इन सोलह दिनों तक सब प्रकार से संयमित दिनचर्या होनी चाहिए।
तर्पण विधि:--
भाद्रपद की पूर्णिमा को प्रातः स्नानादि से निवृत होकर भगवान् श्री गणेश और माता पार्वती का ध्यान करें। गायत्री मन्त्र से शिखा बाँधकर तिलक लगाकर दाहिनी अनामिका के मध्य पोर में दो कुशों और बायीं अनामिका में तीन कुशों की पवित्री धारण कर लें। हाथ में तीन कुश, यव, अक्षत, और जल लेकर तर्पण का संकल्प करें।
अद्य अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक (नाम) अहं श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थम् देवर्षि मनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।
संकल्प के बाद क्रमशः देव, ऋषि और पितरों को तर्पण प्रदान करें। पितृतर्पण का सर्वोत्तम समय अपराह्न (दोपहर के बाद का) काल है।
देव-तर्पण:--
पूर्व दिशा की ओर मुँह कर, दाहिना घुटना जमीन पर टेककर, एक-एक अञ्जली जल और चावल ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि देवों को तृप्यताम् कहकर अर्पित करें।
ऋषि-तर्पण:--
उत्तर दिशा की ओर मुँह कर, दाहिना घुटना जमीन पर टेककर, मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा आदि ऋषियों को यव मिश्रित जल की एक-एक अञ्जली जल प्रदान करें। इस समय जनेऊ कण्ठ में लपेट लें।
पितृ-तर्पण:--
अब दक्षिण दिशा की ओर मुँह कर, जनेऊ दाहिने कन्धे पर रख कर (अपसव्य) होकर, बायाँ घुटना जमीन पर लगाकर बैठें। तिल मिश्रित जल की तीन-तीन अञ्जलियाँ यम को चौदह बार यमाय नमः तस्मै स्वधा’ कहकर प्रदान करें। उसके बाद पितरों का आवाहन करें।
(ऊँ आगच्छन्तु मे पितर इमं गृह्णन्तु जलाञ्जलिम्)
आवाहन के पश्चात् अमुक गोत्रः अस्मत् पिता अमुक(नाम) तृप्यताम् इदं तिलोदकम् तस्मै स्वधा तस्मै स्वधा तस्मै स्वधा नमः बोलते हुए पिता, पितामह, प्रपितामह.., माता, पितामही....., मातामह (नाना)...,मातामही..., ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों को तीन-तीन अञ्जली तिल-जल प्रदान करें। अन्त में भीष्मपितामह को तीन अञ्जली दें। अन्त में पूर्वाभिमुख होकर, जनेऊ सव्य करके सूर्यदेव को प्रणाम कर यह पितृ-यज्ञ श्री भगवान् को अर्पित करें।
इस प्रकार पिता की तिथि तक महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। तिथि के दिन श्रेष्ठ ब्राह्मण या जमाई, भाञ्जा आदि को न्यौता देकर बुलाएं। पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध,  दही, घी एवं खीर अर्पित करें। तर्पण-पूजन-अर्पण के पश्चात् पितरों को श्रद्धापूर्वक विसर्जित करें। गाय, कुत्ता,कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें। ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि,वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
आश्विन कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं । जिन पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद न हो उनका श्राद्ध इस दिन कर पितरों को तर्पण किया जाता है और दान-पुण्य कर विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि इन दिनों पितरों को संतुष्ट करने वाले स्त्री-पुरुष सभी प्रकार के सुख एवं सद्गति प्राप्त करते हैंNote-यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है वह मेरी अपनी नहीं है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें।मैं हर इंसान के लिए ज्योतिष के ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ।

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