Friday, May 16, 2014

जानें क्या है सर्विक्स कैंसर



कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं. वैसे तो, कैंसर किसी को भी हो सकता है. पर कुछ खास तरह के कैंसर जो, सिर्फ स्त्रियों को ही होते हैं, उनमें से एक है  गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर. गर्भाश्य ग्रीवा के कैंसर को सर्विक्स कैंसर भी कहा जाता है. यह कैंसर होता कैसे है यह जानने के लिए स्त्री के शरीर की आंतरिक संरचना को समझना बहुत जरूरी है. वैजाइना के आगे गर्भाशय का मुख स्थित होता है. इसे ही गर्भाशय ग्रीवा अर्थात सर्विक्स कहा जाता है. गर्भाशय ग्रीवा में कैंसर कोशिकाओं के बनने से ही सर्विक्स कैंसर होता है. सर्विक्स के क्षेत्र में कोई संक्रमण हो या कैंसर कोशिकाएं बनने लगें तो स्त्री की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है. हो सकता है, स्त्री कभी भी गभर्धारण न कर पाए. यही नहीं, सर्विक्स के क्षेत्र में कैंसर कोशिकाओं को नियंत्रित न किया जाए तो कैंसर कोशिकाएं धीरे-धीरे गर्भाशय के क्षेत्र में भी बड़ी आसानी से फैल जाती हैं और स्त्री की मौत भी हो सकती है. औरतों को होने वाले कैंसर में करीब 40 प्रतिशत सर्विक्स कैंसर के मामले होते हैं.यदि मैलिगनेंट गांठें सर्विक्स के क्षेत्र में हों तो स्त्री को  सर्विक्स कैंसर हो जाता है.
प्रमुख लक्षण
अंम्बेडकर अस्पताल के कैसर विभागाध्यक्ष डॉ. विवेक चौधरी सर्विक्स कैंसर की शुरुआत में प्रकट होने वाले लक्षणों के बारे में कहतें हैं, ह्यदो मासिक चक्रों के बीच में रक्तस्त्राव होना, वैजाइना से सफेद स्त्राव होना, वैजाइना की सफाई के  समय खून आना, पेट के निचले हिस्से में दर्द होना आमतौर पर सर्विक्स कैंसर के लक्षण होते हैं. यदि किसी स्त्री को ऐसा हो तो तत्काल किसी अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाना चाहिए. इतना ही नहीं, यदि स्त्री को सहवास के दौरान खून आए तो यह भी सर्विक्स कैंसर का संकेत हो सकता है.
क्या है सर्विक्स कैंसर की वजह
सर्विक्स कैंसर के कारणों को समझना बेहद जरूरी है. आवश्यक साफ-सफाई नहीं बरतने से इस कैंसर का खतरा सबसे अधिक होता है.  चूंकि स्त्री के प्रजनन तंत्र की संरचना बहुत जटिल और सूक्ष्म होती है. अत: यदि स्त्रियां अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता में जरा भी लापरवाही करें तो पुरुषों की अपेक्षा उनमें संक्रमण जल्दी हो जाता है. 
सर्विक्स कैंसर के साथ सबसे खतरनाक बात तो यह है कि इसके अधिकांश मामलों में कैंसर अंतिम अवस्था में पहुंच चुका होता है. जहां स्त्री का इलाज और उसकी जान बचा पाना चिकित्सक के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है.18 वर्ष से कम उम्र में विवाह, अधिक बच्चे होना, धूम्रपान करना और बिना डॉक्टर की सलाह के गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन भी सर्विक्स कैंसर का कारण बन सकता है. यही नहीं, यौन संक्रामक रोग और खास तरह का एचपीवी (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) भी मूलत: सर्विक्स के आसपास के क्षेत्र की कोशिकाओं के अनियंत्रित गुणात्मक विखंडन की प्रक्रिया को उकसाता है. लेकिन सर्विक्स कैंसर का पता लगाने वाली सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक जांच है- पेप्सस्मीयर टेस्ट.
क्या है पेप्सस्मीयर टेस्ट - पेप्सस्मीयर टेस्ट के तहत महिला के योनि से निकलने वाले द्रव को चम्मचनुमा किसी चीज की सहायता से खुरच कर निकाल लिया जाता है. इस द्रव को कांच की परखनली में इकट्ठा करके सूक्ष्मदर्शी से इसकी जांच की जाती है. इस जांच से यह जानकारी मिल जाती है कि योनि से निकाले गए द्रव की कोशिकाएं खतरनाक प्रकृति की हैं या नहीं. पेप्सस्मीयर के परिणामों को तीन भागों में बांटा जाता है-
निगेटिव - इसके अंतर्गत माना जाता है कि पेप्सस्मीयर टेस्ट में कैंसरकारी कोशिकाएं नहीं पाई गई हैं. फिर भी हर विवाहित स्त्री को प्रत्येक तीन साल के अंतराल में पेप्सस्मीयर टेस्ट करवाना चाहिए. जिन औरतों की उम्र 65 वर्ष के आसपास हो और पेप्सस्मीयर की रिपोर्ट लगातार निगेटिव आती रही हो तो उन्हें आगे यह जांच कराने की कोई जरूरत नहीं होती.
अनिश्चय - इसके अंतर्गत पेप्सस्मीयर टेस्ट में इस बात के ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिससे पता चले कि योनि से निकलने वाले द्रव में कैंसरकारी कोशिकाएं हैं ही. इसलिए अंतिम निर्णय पर पहुंचने से पहले फिर से यही जांच किए जाने की आवश्यकता है. संभव है, कि स्लाइड से प्राप्त कोशिकाओं में अत्यंत कम मात्रा में कोई दोष पाया गया हो, जो योनि में किन्हीं अन्य कारणों से हुई सूजन और संक्रमण आदि कारणों से भी हो सकता है. परंतु, इस स्थिति में इलाज और हर तीसरे और छठे महीने पेप्सस्मीयर टेस्ट कराते रहना जरूरी है ताकि पेप्सस्मीयर टेस्ट में थोड़ा भी पॉजिटिव संकेत मिलते ही उचित इलाज आरंभ किया जा सके. पेप्सस्मीयर टेस्ट रिपोर्ट में अनिश्चय की स्थिति में यदि डॉक्टर को जरा भी संदेह होता है तो वैजाइना से प्राप्त द्रव की बायोप्सी करना जरूरी होता है. यहां यदि डिस्प्लेजिया या पहले चरण का कैंसर पाया गया तो माइक्रोस्कोप से जांच की जाती है.
पॉजिटिव - इसका अर्थ है कि पेप्सस्मीयर जांच में गंभीर कोशिका दोष है और सर्विक्स कैंसर के संकेत मिले हैं. इसलिए ऐसी स्थिति में बायोप्सी अति आवश्यक है.
बीमारी के प्रमुख चरण - सर्विक्स कैंसर की स्थिति में इलाज को भी कैंसरकारी कोशिकाओं की उग्रता को देखते हुए चार चरणों में बांटा जाता है-
स्टेज वन - इसका अर्थ है कि कैंसर सिर्फ श्रोणि प्रदेश तक ही सीमित है और सजर्री द्वारा गर्भाश्य को निकाल देने से भविष्य में कैंसर होने की संभावना को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है। लेकिन इसके बाद स्त्री गभर्धारण नहीं कर पाती.  यदि डॉक्टर को स्थिति थोड़ी भी गंभीर नजर आती है तो   सजर्री द्वारा गर्भाशय निकाल दिए जाने के बाद भी रेडियोथेरेपी द्वारा कैंसर कोशिकाओं को जला दिया जाता है.
स्टेज टू ए और स्टेज टू बी - इस स्थिति में पहुंचने का अर्थ है कि कैंसर कोशिकाएं वैजाइना के आसपास के हिस्सों में भी फैल गई हैं. कैंसर कोशिकाओं ने आसपास के अंगों को कितना अधिक जकड़ लिया है, इसी आधार पर सर्विक्स कैंसर के लक्षणों को स्टेज टू ए और टू बी दो भागों में बांटा जाता है. साथ ही यह भी तय किया जाता है कि मरीज को सिर्फ कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या दोनों की जरूरत है.
स्टेज थ्री - इस अवस्था में कैंसर कोशिकाएं पेल्विक वाल तक पहुंच जाती हैं.   स्टेज फोर:इस अवस्था में कैंसर कोशिकाएं ब्लैडर और रेक्टम को भी अपने चंगुल में ले लेती हैं. यह गंभीरतम स्थिति होती है.स्टेज थ्री और स्टेज फोर में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी साथ-साथ दी जाती है. इन दोनों ही अवस्थाओं में सजर्री नहीं की जा सकती. इन दोनों ही अवस्थाओं में कैंसर कोशिकाएं अंदर-अंदर इतनी दूर तक फैल चुकी होती हैं कि आॅपरेशन की कोई अहमियत नहीं रह जाती. सर्विक्स कैंसर स्त्री के शरीर को पूरी तरह भीतर-भीतर खोखला बना देता है। यदि सही समय पर सही इलाज शुरू हो गया और अगले पांच वर्षो में उस स्त्री में दोबारा कैंसर के लक्षण प्रकट नहीं हुए तो स्टेज वन कैंसर के 80-90 प्रतिशत मामलों में माना जाता है कि स्त्री पूरी तरह ठीक हो गई है. लेकिन एक बार सर्विक्स कैंसर का इलाज पूरा होने के बाद भी प्रत्येक तीन माह पर स्टेज टू सर्विक्स कैंसर का सफल इलाज करा चुकी करीब 65-75 प्रतिशत स्त्रियों में यदि पांच वर्षो तक कैंसर के लक्षण नहीं मिले तो वह हमेशा के लिए सर्विक्स कैंसर से मुक्त मानी जाती हैं. लेकिन स्टेज थ्री और स्टेज फोर की अवस्था गंभीर मानी जाती है. स्टेज थ्री कैंसर सर्विक्स वाली 50 प्रतिशत और स्टेज फोर में पहुंचने वाली सिर्फ 20-25 प्रतिशत स्त्रियों में ही अगले पांच वर्षो में कैंसर दोबारा प्रकट नहीं होने पर ये स्त्रियां कैंसरमुक्त मानी जा सकती हैं.यदि स्टेज वन कैंसर है और स्त्री लगभग पूरे समय की गर्भवती है तो चिकित्सक बच्चे के जन्म की अनुमति दे देते हैं लेकिन प्रसव के तुरंत बाद आवश्यक चिकित्सा अनिवार्य हो जाती है.
कुछ खास बातें
जननांगों की आवश्यक स्वच्छता का ध्यान रखकर इस प्रकार के कैंसर से बचा जा सकता है. खास तौर से पीरियड के दौरान अंत:वस्त्रों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए और जरूरत पड़ने पर उसे बदलते रहना चाहिए.   हमेशा अच्छी क्वालिटी के सैनिटरी नैपकिन का ही इस्तेमाल करना चाहिए. सर्विक्स कैंसर से बचने के लिए यह जरूरी है कि आपके साथ आपके पति भी अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता का पूरा
ध्यान रखें.    
विकसित देशों में तो स्त्रियों में पर्याप्त जागरूकता और स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण यह कैंसर स्त्रियों को होने वाले कैंसरों की सूची में छठे-सातवें स्थान पर चला गया है जबकि भारत की स्त्रियां अब भी सर्विक्स कैंसर से बदहाल हैं क्योंकि भारतीय स्त्रियों में अपने स्वास्थ्य के प्रति अपेक्षित जागरूकता का अभाव है.

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